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________________ १६२ ] [ पट्टावलो-पराग सं० १६८४ में मन्त्री जयमल्लजी ने जालोर में श्री विजयसिंहमूरिजी की गच्छानुज्ञा नन्दी करवाई। बाद में मेड़ता नगर में तीन प्रतिष्ठाए करवा कर बीजोवा में चातुर्मास्य किया । गच्छ के गीतार्थो के उपदेश से खुश होकर राणा श्री जयसिंहजी ने पौष-दशमी के मेले पर पाने वाले यात्रियों से लिया जाने वाला मुडका के रूप में यात्रिक कर माफ किया। अपनी प्राज्ञा ताम्र-पत्र में खुदवा कर गुरु को भेंट किया तथा पत्थर पर खुदवा कर मन्दिर के बाहर पत्थर खड़ा किया। बाद में राणपुर आदि को यात्रा कर झाला श्री कल्गरणजी के आग्रह से मापने मेवाड़ में विहार किया और खमणोर में दो, देलवाड़ा में एक, नाही गांव में एक और प्राघाट नगर में एक, ऐसी ५ प्रतिष्ठा करा कर उदयपुर में चातुर्मास्य किया। चातुर्मास्य पूर्ण होने के बाद गुजरात की तरफ विहार करते समय माप दल-बदल महल में ठहरे जहां राणा श्री जगत्सिहजी प्राचार्य को वन्दन करने आए और देर तक उपदेश सुना । परिणामस्वरूप राणाजी ने श्री विजयदेवसूरि के सामने चार बातों की प्रतिज्ञा की, वह इस प्रकार हैं - माज से पिछौला तथा उदयसागर तालाब में मछली नहीं पकड़ो जायगो १, राज्याभिषेक के दिन, गुरुवार को, जीवहिंसा बन्द रहेगी २, अपने जन्ममास भाद्रवा में जीवहिंसा नहीं होगी ३, मचिदगढ़ में, कुम्भलविहार जिन चैत्य का जीर्णोद्धार कराया जायगा ४ । राणाजी की उक्त ४ प्रतिज्ञाएँ सुनकर लोगों को बड़ा प्राश्चर्य हुआ। प्राचार्य के लोकोत्तर प्रभाव पर विश्वास पाया । मालवमण्डल में उज्जैनी आदि में, दक्षिण देश में बीजापुर, बुरहानपुर प्रादि में, कच्छ में भुजनगर आदि में, मारवाड़ में जालोर, मेड़ता, घंघानी प्रादि गांवों में जीर्णोद्धारपूर्वक सैकड़ों जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराते अनेक साधुनों को पण्डित-पद तथा पाठक-पदों पर स्थापित करते और जीव हिंसादि के निषेध नियम कराते हुए विचरे । "तपगरणगणपतिपद्धति - रेषा गुणविजयवाचकैलिलिखे । गन्धारवन्दिरीय-श्रावक सा० मालजी तुष्ट्यं ॥१॥" ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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