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________________ द्वितोय-परिच्छेद ] [ १६१ सूरिमन्त्र का तीन महीने तक ध्यान किया और वहीं चातुर्मास्य तथा २ प्रतिष्ठाएं करके ईडर गए। वहां तीन प्रतिष्ठाए' करवा कर संघ के साथ पारासरण आदि तीर्थों की यात्रायें करते हुए पोसीना गए, वहां के पुराने पांच मन्दिरों का उपदेश द्वारा जीर्णोद्धार करवाया। आरासरण के मूल नायक को प्रतिष्ठा योग्य समय में पुनः स्थापित किया। कालान्तर में आप फिर ईडर पधारे और कल्याणमल्ल राजा के पाग्रह से १६८१ में वैशाख सुदि ६ को विजयसिंहसूरि को प्राचार्य-पद देकर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और चातुर्मास्य वहां ही ठहरे। ____ चातुर्मास्य के बाद आप विजयसिंहसूरिजो आदि परिवार के साथ आबु तीर्थ की यात्रा करके विहारक्रम से सिरोही पहुंचे और वर्षा चातुमस्यि वहां ही किया। आसपास के अनेक स्थानों के भाविक श्रावक वन्दनार्थ पाए और अपने-अपने नगर की तरफ विहार करने की प्रार्थनायें की, उनमें सादड़ो के श्रावक भी थे। उन्होंने लुम्पक मत के अनुयायियों के प्रचार की बात कह कर, फरियाद करते हुए कहा - हमारे नगर में लुकामत का प्रचार जोरों से बढ़ रहा है और हमारा समुदाय निर्बल हो रहा है । इस पर से प्राचार्यश्री ने अपने पास के गोतार्थो को सादडो भेजा और उन्होंने बहां जाकर लंका के वेशधारियों को ललकारा और निरुत्तर किया। वहां से गीतार्थ उदयपुर पहुँचे और मेवाड़ के राणा कर्णसिंह के पास जाकर राणाजो को अपनी विद्वत्ता से सन्तुष्ट करके उनको राजसभा में लुम्पक वेशधारियों को शास्त्रार्थ के लिये बुलवाया और राजसभा समक्ष लुम्पकों को पराजित करके राणाजी को सही वाला प्राज्ञा-पत्र लिखवाया कि तपागच्छ वाले सच्चे हैं और लुंके झूठे हैं, गणाजी का यह पत्र सादड़ी के चौक में पढ़ा गया और लुंकों का प्राबल्य हटाया। ____ इसके बाद जोधपुर के राजा श्री गजसिंहजी के मन्त्री जयमल्लजी ने श्री विजयदेवसूरिजी को जालोर बुलाया और बड़े आडम्बर के साथ एकएक वर्ष के अन्तर में तीन प्रतिष्ठाएँ तथा तीन चातुर्मास्य करवा कर सुवर्णगिरि के ऊपर तीन चैत्यों की प्रतिष्ठाए करवाई। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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