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________________ द्वितीय-परिच्छेद ] [ १५१ - "षडावश्यक" "नवतत्त्वादि" ग्रंथों पर बालावबोध भाष्य लिखे थे, कई ग्रन्थों पर अवचूणियां लिखी थीं और "कल्याणस्तोत्रादि'' अनेक "जिनस्तोत्र" बनाए थे। श्री सोमसुन्दरसूरिजी के चार शिष्य आचार्यपद पर स्थित थे, श्री मुनिसुन्दरसूरि १, श्री जयसुन्दरसूरि २, श्री भुवनसुन्दरसूरि ३ और जिनसुन्दरसूरि ४ । प्राचार्य मुनिसुन्दरसूरिजी ने अनेक ग्रन्थों का निर्माण किया था । प्राचार्य श्री भुवनसुन्दर सूरि ने “महाविद्याविडम्बन" का टिप्पन लिखा था। श्री जिनसुन्दरसूरि ने "दीपावली कल्प'' बनाया था । अपने इन विद्वान शिष्यों के परिवार से परिवृत श्री सोमसुन्दरसूरिजी ने राणकपुर के श्रीधरण चतुर्मुख विहार में संवत् १४६५ में ऋषभादि अनेक जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा की थी और १४६६ में आप स्वर्गवासी हुए थे। प्राचार्य श्री मुनिसुन्दरसूरि का १४३६ में जन्म, १४४३ में दीक्षा, १४६६ में वाचक पद और १४७८ में सूरि पद हुआ था। प्राचार्य मुनिसुन्दरसूरि प्रखर जैन विद्वानों में से एक थे, आपने सैकड़ों चित्र-स्तोत्रों की रचना की थी जिनकी संख्या ही नहीं है, आपने 'त्रिदशतरंगिणी" नामक १८ एक सौ आठ इस्तपरिमित विज्ञनिलेखन अपने गुरु पर भेजा था, ' उपदेशरत्नाकर" "चावे अवैशारद्यनिधि" : विजयचन्द्रकेवलिचरित्र" आदि अनेक विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों को रचना की थी, आपका स्वर्गवास १५०३ के कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन हुअा था। श्री मुनिसुन्दरसूरि के पट्टधर श्री रत्नशेखरसूरि का जन्म १४५७ में और मतान्तर से १४५२ में हुआ, १४६३ में व्रतग्रहण, १४८३ में पण्डित पद, १४९३ में वाचक पद, १५०२ में सूरिपद और १५१७ में आपका स्वर्गवास हुअा था। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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