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________________ १५० ] [ पट्टावली-पराग "एगुणवण्णो सिग्देिव सुन्दरो ४६ सोमसुन्दरो पण्णो ५० । मुनिसुन्दरेगवण्णो ५१, बावण्णो रयणसेहरो ५२ ॥१६॥" 'सोमतिलक सूरि के पट्ट पर ४६ वें श्री देवसुन्दरसूरि हुए और देवसुन्दरसूरि के पट्ट पर श्री सोमसुन्दरसूरि, सोमसुन्दर के पट्ट पर श्री मुनिसु-दरसूरि और मुनिसुन्दरसूरि के पट्ट पर श्री रत्नशेखरसूरि ५२ वें पट्टधर हुए ॥१६॥ प्राचार्य देवसुन्दरसूरि का जन्म १३९६ में, दीक्षा १४०४ में, प्राचार्यपद १४२० में अणहिल पाटन में हुप्रा। आचार्य देवसुन्दरसूरिजी के ५ शिष्य थे जिनके नाम श्री ज्ञानसागरसूरि, श्री कुलमण्डनसूरि, श्री गुणरत्नसूरि, श्री सोमसुन्दरसूरि और श्री साधुरत्नसूरि थे। ज्ञानसागरसूरि का जन्म १४०५ में, दीक्षा १४१७ में, प्राचार्यपद १४४१ में और स्वर्गवास १४६० में हुआ था। ज्ञानसागरसूरि ने आवश्यक और प्रोपनियुक्ति पर प्रवचूणियां लिखी थी और अनेक तीर्थङ्करों के स्तव स्तोत्रादि बनाये थे। ___श्री कुलमण्डन सूरि का जन्म १४०६ में, दीक्षा १४१७ में, सूरिपद १४४२ में और १४५५ में स्वर्गवास हुआ था। श्री कुलमण्डनसूरि ने "सिद्धान्तालापकोद्धार" और अनेक "चित्रकाव्य स्तवों" की रचना की थी। प्राचार्य श्री गुणरत्नसूरि ने "क्रियारत्नसमुच्चय" "षड्दर्शनसमुच्चयबृहवृत्ति" आदि ग्रन्थ रचे थे और साधु रत्नसूरि ने “यतिजीतकल्पवृत्ति" आदि का निर्माण किया था। प्राचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजी का जन्म १४३० में, दीक्षा १४३७ में। वाचकपद १४५० में और सूरिपद १४५७ में हुआ था। सोमसुन्दरसूरि बड़े भाग्यशाली और क्रियापरायण थे। इनकी निश्रा में १८०० क्रियापात्र साधु विचरते थे। श्री सोमसुन्दरसूरिजी ने "योगशास्त्र" "उपदेशमाला" ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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