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________________ १३८ ] [ पट्टावली-पराग - दुष्षमासंघस्तवयंत्रकानुसारेण चतुश्चत्वारिंशदधिक पंचशत ५४४ वर्षातिकमे श्रीमार्यरक्षितसूरीणां दीक्षा विज्ञायते तथा चोक्तसंवत्सरे निर्यामरणं न संभवतीत्येतद्वहुश्रुतगम्यम् ॥" सागरजी का प्रश्न वास्तविक है, परन्तु इसका समाधान प्रशुद्धिपूर्ण यन्त्रकों के आधार से नहीं हो सकता। हमारी गणना के अनुसार आर्यरक्षितजी का स्वर्गवास जिननिर्वाण से ५८३ में आता है । प्रायंरक्षितजी के सर्वायुष्य का अंक ७५ वर्ष और कुछ महोनों का था। उन्होंने २२ वर्ष की उम्र में “तोलिपुत्राचार्य" के पास दीक्षा ली थी। ५८३ वर्ष में से ७५ वर्ष बाद करने पर आर्य रक्षितजी का जन्म समय ५०८ का पाता है, उसमें २२ वर्ष गृहस्थाश्रम के जोड़ने पर ५३० में दीक्षा का समय प्राता है। दीक्षा लेकर दो-ढाई वर्ष तक अपने गुरु के पास पढ़कर विशेष अध्ययन के लिये वज्रस्वामी के पास जा रहे थे, जबकि उज्जैनो में स्थविर भद्रगुप्त की निर्यामणा करने का अवसर मिला था और भद्रगुप्त के स्वर्गवास के बाद वज्रस्वामी के पास पहुँचे थे। इस प्रकार से उपाध्यायजी की शंका का समाधान ठीक ढंग से हो जाता है । इसी प्रकार मार्यरक्षितसूरि के स्वर्गवास समय के बारे में भी उपाध्यायजी महाराज ने अपने पट्टावली-सूत्र की टीका में एक शंका उपस्थित की है जो निम्न शब्दों में है :___श्रीमदायरक्षितसूरिः सप्तनवत्यधिकपंचशत ५६७ वर्षान्ते स्वर्गभागिति पट्टावल्यादौ दृश्यते, परमावश्यकवृत्त्यादौ श्रीमवार्यरक्षितसूरीणा स्वर्गगमनानन्तरं चतुरशीत्यधिकपंचशत ५८४ वर्षान्ते सप्तमनिह्नवोत्पत्तिरुक्तास्ति तेनैतद् बहुश्रुतगम्यमिति ।" उपाध्याय की यह शंका भी वास्तविक है और इसका समाधान भो यही है कि प्रार्यवज्र तथा प्रार्यरक्षितसूरि के स्वर्गवास के समय में जो १४-१४ वर्ष अधिक पाए हैं, उनको हटा दिया जाय, क्योंकि इस प्रकार की अशुद्धियां प्रकीर्णक प्रशुद्ध गाथानों के ऊपर से पट्टावलियों में घुस गई हैं, जिनका परिमार्जन करना आवश्यक है। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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