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________________ द्वितीय-परिच्छेद ] [ १३७ - के समय विषयक प्राचीन गाथाओं के आधार से पट्टावली-लेखकों ने ऊह पोह अवश्य किया है, परन्तु आवश्यक नियुक्ति के साथ आर्य बन का समय भी ठोक नहीं मिलता । प्रावश्यक-निर्य क्ति में गोष्ठामाहिलनिह्नव का समय वीरनिर्वाण से ५८४ में बताया है । आर्य रक्षितसूरि दशपुर नगर में चातुमास्य ठहरे हुए थे, तब गोष्ठामाहिल वर्षाचातुर्मास्य में मथुरा में थे, आर्य रक्षितजी उसी चातुर्मास्य में स्वर्गवासी हुए थे, तब गोष्ठामाहिल ने चातुर्मास्य के बाद मथुरा से दशपुर पाकर ५८४ में “अबद्धिक मत" को प्ररूपणा की थी। वीरनिर्वाण का संवत्सर कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को बैठता है। इससे पाया गया कि प्रार्य रक्षितजी का स्वर्गवास ५८३ में हुआ था और मार्यरक्षित, आर्य वज्रस्वामी के अनन्तर १३ वर्ष तक युगप्रधान रहे थे । इस परिस्थिति में निश्चित हो जाता है कि आर्य वज्रस्वामी का स्वर्गवास ५८४ में नहीं किन्तु ५७० में हुआ था और उसके १३ वर्ष के बाद दशपुर में आर्य रक्षित ने जिननिर्वाण से ५१३ में स्वर्गवास प्राप्त किया था। हमारी गणना के अनुसार प्रार्य वज्रका जन्म वीर-निर्वाण से ४८२ में हुआ। इनकी दीक्षा ४६० में हुई, ५३४ में युगप्रधान पद प्राप्त हुआ । और स्वर्गवास ५७० में हुआ। इस प्रसंग पर उपाध्यायजी श्री धर्मसागरजी महाराज एक शंका उपस्थित करते हैं और उसका समाधान न होने से प्रश्न बहुश्रुतों के ऊपर छोड़ते हैं । सागरजी की वह शंका निम्नोद्धृत है : "तत्र श्रीवीरात् त्रयस्त्रिंशदधिकपंचशत ५३३ वर्षे श्री प्रार्यरक्षितसूरिया श्री भद्रगुप्ताचार्यों निर्यामितः स्वर्गभागिति पट्टावल्यां दृश्यते। परं समय वीर निवारण से ३२७ में लिखा है । इनमें हमारे परिशोधित आर्य संभूत के ६० वर्ष के अनुसार ५२ वर्ष मिलाने से सुस्थित सुप्रतिबुद्ध का समय ३७६ आता है जो संगत ठहरता है । हमारी एक हस्तलिखित पट्टावली में जो कि १८ वीं शती के अन्तिम भाग में लिखी हुई भाषा पट्टावली है, उसमें स्थविर सुस्थित सुप्रतिबुद्ध का समय वीर निर्वाण से ३७२ वर्ष का लिखा है। इसी पट्टावली में आर्य इन्द्रदिन्न का स्वर्ग समय ३७८, आर्य दिन्न सूरि का समय ४५८ और सिंहगिरि का ५२३ वर्ष लिखा है, इन वर्षों में आर्य संभूतसूरि के परिगणित ५२ वर्षों को मिलाने से क्रमशः ४३०,५१०, और ५७५ निर्वाण के वर्ष पाते हैं। For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_05 www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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