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________________ १३४ ] [ पट्टावली-पराग केवलीपर्याय भोगा। इस प्रकार १०० वर्ष का आयुष्य भोगकर जिननिर्वाण से २० वर्ष के अन्त में सुधर्मा गणधर सिद्धि को प्राप्त हुए । सुधर्मा के पट्टधर श्री जम्बूस्वामो, जो राजगृह नगर के श्रेष्ठिपुत्र थे, गणधर सुधर्मा के पास १६ वर्ष की वय में दीक्षा लेकर २० वर्ष तक अपने गुरु सुधर्मा की सेवा में रहे और सुधर्मा के बाद ४४ वर्ष तक युगप्रधान रहकर ८० वर्ष की अवस्था में वीरनिर्वाण से ६४ वर्ष व्यतीत होने पर निर्वाण-प्राप्त हुए थे। ___ जम्बू के पट्टधर प्राचार्य श्री प्रभव ३० वर्ष की अवस्था में दीक्षा लेकर ४४ वर्ष तक व्रतपर्याय में रहे और जम्बू का निर्वाण होने के बाद ११ वर्ष युग प्रधान रह कर ८५ वर्ष की उम्र में वीरनिर्वाण से ७५ वर्ष के बाद स्वर्गवासो हुए। ___ प्राचार्य प्रभव के उत्तराधिकारी श्री शय्यम्भवसूरि २८ वर्ष की उम्र में दीक्षा लेकर ११ वर्ष सामान्य व्रत-पर्याय में और २३ वर्ष तक युगप्रधान पर्याय में रहकर वीरनिर्वाण के १८ वर्ष के अन्त में स्वर्गवासी हुए थे। प्राचार्य श्री शय्यम्भव स्वामी के पट्टधर श्री यशोभद्रसूरि हुए - २२ वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली थी और १४ वर्ष तक सामान्य व्रती की अवस्था में रहकर ५० वर्ष तक युगप्रधान रहे और ८६ वर्ष की अवस्था में जिननिर्वाण के बाद १४८ वर्ष व्यतीत होने पर स्वर्गवासी हुए । प्राचार्य यशोभद्रसूरिजी के पट्टधर दो समर्थ आचार्य हुए। पहले श्री सम्भूतविजयजी और दूसरे श्री भद्रबाहु स्वामी । संभूतविजयजी २२ वर्ष की अवस्था में दीक्षित हुए थे और ८ बर्ष तक सामान्यव्रती-पर्याय भोगकर युगप्रधान बने और ६० वर्ष तक युगप्रधान रहकर ६० वर्ष की अवस्था में जिननिर्वाण से २०८ वर्ष के अन्त में स्वर्गवासी१ हुए। (१) आचार्य संभूतविजयजी के युगप्रधान पर्याय के वर्ष सर्व पट्टावलियों में ८ लिखे मिलते हैं, परन्तु हमने यहां ६० लिखे हैं, क्योंकि पुस्तक लेखक के प्रमाद से "सट्ठि" के स्थान पर “स?" बन जाने से ६० को आठ (८) मान लिया गया, यह भूल Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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