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श्री तपागाछ - पहावली- सूत्र
कर्ता : उपाध्याय धर्मसागर गणी
"सिरिमंतो सुहहेऊ, गुरु-परिवाडीइ आगो संतो।
पज्जोसवरणाकप्पो, बाइज्जइ तेण तं वुच्छ ॥१॥" 'पट्टावली सूत्रकार उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज पट्टावली सूत्र लिखने के पहले अपनी इस प्रवृत्ति का कारण बताते हुए कहते हैं, श्रीमान् “पर्युषणाकल्प" जो सुख का हेतु है और गुरु परम्परा से हम तक पाया है, इसलिए मैं गुरु-परिपाटो का निरूपण करूंगा ।१।'
"गुरुपरिवाडीमूलं, तित्थयरी बद्धमारणमारणं । सप्पट्टोदय-पढमो, सुहम्मनामेण १ गरणसामी ॥२॥ बोसो जंबू २ तइयो, पभवो ३ सिज्जभवो चउत्यो प्र।
पंचमनो जसभद्दो ५, छट्टो संभूय-भद्दगुरू ६ ॥३॥" ... 'गुरुपरिपाटी का मूल तीर्थकर महावीर हैं, जिनके पट्ट पर सुधर्मनामा प्रथम गणधर हुए। सुधर्मों के पट्ट पर जंबूस्वामी, अंबूस्वामी के पट्ट पर तीसरे पट्टधर प्रभव, प्रभव के पट्टधर शय्यम्भव, शय्यम्भव के उत्तराधिकारी पांचवें यशोभद्र और यशोभद्र के पट्टधारी छठवें संभूतविजय और भद्रबाहु हुए । २ । ३।'
गणधर सुधर्मा ने पचास वर्ष की अवस्था में महावीर के पास प्रव्रज्या ली थी। ३० वर्ष तक श्रीमहावीर की सेवा में रहे, वीरनिर्वाण के बद १२ वर्ष तक छद्मस्थपर्याय में विचरे और अन्त में आठ वर्ष तक
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