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________________ प्रथम-परिच्छेद 1 [ १२५ - चन्द्रायणद भट्टार गुणचन्द्र अभयदि शीलभद्र भटार जयणन्दि गुणनन्दि चन्द्रगन्दि शक संवत् १०५० के लेख नं० ५४ में निर्दिष्ट प्राचार्यपरम्परा वर्द्धमानजिन गौतम गणधर भद्रबाहु चन्द्रगुप्त कुन्दकुन्द समन्तभद्र – वाद में धूर्जटि को जिह्वा को भी स्थगित करने वाले सिंहनन्दि वक्रग्रीव - छः मास तक "अथ" शब्द का अर्थ करने वाले बननन्दि (नव स्तोत्र के कर्ता) पात्रकेसरिगुरु ( विलक्षण सिद्धान्त के खण्डनकर्ता ) सुमतिदेव (सुमति-सप्तक के कर्ता ) कुमारसेन मुनि चिन्तामणि (चिन्तामणि कर्ता) श्री वर्द्धदेव (चूडामणि काव्य के कर्ता दण्डी द्वारा स्तुत्य ) महेश्वर ( ब्रह्मराक्षसों द्वारा पूजित ) अकलंक (बौद्धों के विजेता साहसतुंग नरेश के सन्मुख हिमशीतल नरेश की सभा में) पुष्पसेन (अकलंक के सधर्मा ) विमलचन्द्र मुनि - इन्होंने शैव पाशुषतादि कादियों के लिए "शत्रुभयंकर" नाम से भवन द्वारपर नोटिस लगा दिया था। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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