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[ पट्टावली-पराम
बार एकांगधरों के नाम भट्टारक श्री वीरसेन स्वामी ने ईजाद किये हों तो प्राश्चर्य नहीं है, क्योंकि ऐसे कामों में श्राप सिद्धहस्त थे। चूरिंकार को प्राप ही ने "यतिवृषभ' के नाम से प्रसिद्ध किया है । दिगम्बर परम्परा में व्यवस्थित और अविच्छिन्न परम्परा सूचक पट्टावली नहीं है । श्रतः प्रव दो चार अपूर्ण पट्टावलियां देकर इस अधिकार को पूरा कर देंगे ।
नन्दिसंघ, द्रमिलगण, मरुङ्गलान्वय की पट्टावलियाँ
महावीर स्वामी
गौतम गणधर
समन्तभद्र स्वामी
एकसन्धि सुमति भट्टारक अकलंकदेव वादीभसिंह
चकग्रीवाचार्य
श्रीrerati
सिंहनन्द्याचा
श्रीपाल भट्टारक
कनकसेन वादिराज देव
श्री विजयशान्तिदेव
पुष्पसेन सिद्धान्तदेव
वांविराज
शांन्तिषेण देव
कुमारसेन सिद्धान्तिक
मलिषेण मलधारी
श्रीपाल त्रैविद्यदेव (शक सं० २०४७ में विष्णुवर्द्धन
चरेश ने शल्य ग्राम का दान दिया !)
समय के आचार्यो की परम्परा
काय योगीश देवेन्द्रमुनि (सिद्धान्तमद्वार)
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