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________________ १२२ ] [ पट्टावलो-पराग - "श्रुतावतार" के लेखानुसार प्रारातीय मुनियों के बाद "ग्रहदलि" प्राचार्य हुए थे। पारातीय मुनि वीर निर्वाण से ६८३ (विक्रम संवत् २१३) तक विद्यमान थे, इसके बाद क्रमशः अर्हद्वलि, माघनन्दी, धरसेन, पुष्पदन्त, भूतबलि नामक प्राचार्य हुए। पुष्पदन्त और भूतबलि ने षट्खण्डागम सूत्र को रचना की। उधर गुणधर मुनि ने नागहस्ती और प्रार्य मा को “कषाप्राभृत" का संक्षेप पढ़ाया। उनसे “यतिवृषभ" और 'यतिवृषभ” से “उच्चारणाचार्य" ने "कषायप्राभृत" सीखा और गुरुपरम्परा से दोनों प्रकार का सिद्धान्त पद्मनन्दि (कुन्दकुन्द) तक पहुंचा। . श्रुतावतार कथा के अनुसार प्रारातीय मुनि वीर निर्वाण सं० ६८३ तक विद्यमान थे। इनके वाद अहंद्वलि, माघनन्दी, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबलि प्राचार्य हुए हों तो इन पांच प्राचार्यों में कम से कम १२५ वर्ष और बढ़ जाते हैं और वीर निर्वाण सं० ८०८ तक समय पहुँचता है। दोनों प्रकार के सिद्धान्त कुन्दकुन्दाचार्य तक पहुँचाने वाली गुरु-परम्परा में भी पांच-छः प्राचार्य तो रहे ही होंगे और इस प्रकार निर्वाण के बाद की समय-शृङ्खला लगभग दशवीं शती तक पहुँचती है और इस प्रकार भी प्राचार्य कुन्दकुन्द का समय विक्रम की छठी शती के उत्तरार्ध तक पहुंच जाता है। इसके बाद लगभग १०० वर्षों के उपरान्त दिगम्बर जैन परम्परा के ग्रन्थ पुस्तकों पर लिखे गये हों तो यह घटना विक्रम की सातवीं शती के मध्यभाग में पहुँचेगी। यहां तक हमने जो ऊहापोह किया है, वह दिगम्बरीय पट्टावलियों और दन्तकथाओं के आधार पर, यह ऊहापोह अन्तिम सिद्धान्त ही है यह दावा तो नहीं कर सकते, क्योंकि दिगम्बर पट्रावलियां तथा दन्तकथायें इतनी अव्यवस्थित और छिन्नमूलक हैं कि उनके आधार पर कोई भी सिद्धान्त निश्चित हो ही नहीं सकता। जितने भी दिगम्बरीय सम्प्रदाय के शिलालेख तथा ग्रन्थप्रशस्तियां प्रकाशित हुई हैं, वे सभी विक्रम की नवमी शती और उसके बाद की हैं। इन शिलालेखों, ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार से दिगम्बरों की अविच्छिन्न परम्परा-सूचक पदावलियों का तैयार होना असम्भव है। निर्वाण से ६८३ वर्षों के अन्दर होने वाले फेवलियों, श्र तकेवलियों, दशपूर्वधरों, एकादशांगधरों और एकांगधरों की ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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