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________________ ११२ । [ पट्टावली-पराग - अविश्वसनीय है, बल्कि यह कहना चाहिए कि महावीर-निर्वाण से एक हजार वर्ष तक का इन पट्टावलियों में जो प्राचार्यक्रम दिया हुआ है, वह केवल कल्पित है। पांच चतुर्दशपूर्वधर, दशपूर्वधर, एकादशांगधर, एकांगपाठी, अंगैकदेशपाठी प्रादि प्राचार्यों का जो नाम, समय और क्रम लिखा है उसका मूल्य दन्तकथा से अधिक नहीं है। इनके विषय में पट्टावलियां एक मत भी नहीं हैं। श्रुतकेवली, दशपूर्वधर, एकादशांगधर, अंगपाठी और उनके बाद के बहुत समय तक के प्राचार्यों का नाम-क्रम और समयकम बिलकुल अव्यवस्थित है। कहीं कुछ नाम लिखे हैं और कहीं कुछ, समय भी कहीं कुछ लिखा है और कहीं कुछ । कहीं भी व्यवस्थित समय या नामावली तक नहीं मिलती।। इन बातों पर विचार करने से यह निश्चय हो जाता है कि दिगम्बर पट्टावली-लेखकों ने विक्रम की पांचवीं-छठी सदी से पहले के प्राचीन प्राचार्यों की जो पट्टावलियां दी हैं, वे केवल दन्तकथायें हैं और अपनी परम्परा की जड़ को महावोर तक ले जाने की चिंता से अर्वाचीन प्राचार्यो ने इधर-उपर के नामों को भागे-पीछे करके अपनी परम्परा के साथ जोड़ दिया है। प्रसिद्ध जैन दिगम्बर विद्वान् पं० नाथूरामजी प्रेमी भगवती पाराधना की प्रस्तावना में लिखते हैं : "दिगम्बर सम्प्रदाय में अंगधारियों के बाद की जितनो परम्पराएं उपलब्ध हैं वे सब अपूर्ण हैं और उस समय संग्रह की गई हैं जब मूल संघ प्रादि भेद हो चुके थे और विच्छिन्न परम्परामों को जानने का कोई साधन न रह गया था।" परन्तु वस्तुस्थिति तो यह कहती है कि दिगम्बर सम्प्रदाय में महावीर के बाद एक हजार वर्ष पर्यन्त की जो परम्परा उपलब्ध मानी जाती है वह भी उस समय संग्रह की गई थी जब मूल संघ आदि भेद हो चुके थे, क्योंकि पट्टावली संग्रहकर्तामों के पास जब अपने निकटवर्ती प्राचार्यों को परम्परा जानने के भी साधन नहीं थे, तो उनके भी पूर्ववर्ती अंगपाठी मोर पूर्वधरों की परम्परा का जानना तो इससे भी कठिन था यह निश्चित है। (४) श्रुतकेवली भद्रबाहु के दक्षिण में जाने के सम्बन्ध में बो कथा दिगम्बर ग्रन्थों में उपलब्ध होती है, वह विक्रम की ग्यारहवीं सदी के पीछे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International 2010_05
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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