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________________ प्रथम-परिच्छेद ] [ ११३ -- - की है। दक्षिण में जाने वाले भद्रबाहु विक्रम की कई शताब्दियों के बाद के प्राचार्य थे। यह बात श्रवणबेलगोला की पार्श्वनाथवसति के शक संवत् ५२२ के आसपास के लिखे हुए एक शिलालेख से और दिगम्बर सम्प्रदाय के "दर्शनसार", "भावसंग्रह" आदि ग्रन्थों से सिद्ध हो चुकी है, अतएव श्रुतकेवली भद्रबाहु के नाते दिगम्बर सम्प्रदाय की प्राचीनता विषयक विद्वानों के अभिप्राय निर्मूल हो जाते हैं और निश्चित होता है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु के वृत्तान्त से दिगम्बर सम्प्रदाय का कुछ भी सम्बन्ध नहीं था। दिगम्बर विद्वानों ने जो-जो बातें उनके नाम पर चढ़ाई हैं, वास्तव में उन सब का सम्बन्ध द्वितीय ज्योतिषी भद्रबाहु के साथ है और ज्योतिषी भद्रबाहु का सत्तासमय विक्रम की छठी शती था। वे सप्तमी शतो के प्रारम्भ में परलोकवासी हुए थे। (५) बौद्धों के प्राचीन शास्त्रों में नग्न जैन साधुओं का कहीं उल्लेख नहीं है और विशाखावत्थु, धम्मपद, अट्ठकथा, दिव्यवावदान आदि में जहां नग्न निर्ग्रन्थों के उल्लेख मिलते हैं, वे ग्रन्थ उस समय के हैं जब कि यापनीय संघ मोर माधुनिक दिगम्बर सम्प्रदाय तक प्रकट हो चुके थे। "डायोलोग्स् ऑफ बुद्ध'' नामक पुस्तक के ऊपर से बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित कुछ प्राचार (भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध) नामक पुस्तक में (पृष्ठ ६१-६५) दिए गए हैं जिनमें नग्न रहने और हाथ में खाने का भी उल्लेख है। पुस्तक के लेखक बाबू कामताप्रसादजी की दृष्टि में ये प्राचार प्राचीन जैन साधुनों के हैं, परन्तु वास्तव में यह बात नहीं है। "मज्झिमनिकाय" में साफ-साफ लिखा गया है कि ये प्राचार प्राजीविक संघ के नायक गोशालक तथा उनके मित्र नन्दवच्छ मौर किस्स-संकिच्च के हैं जिनका बुद्ध के समक्ष निग्गंथ श्रमण "सच्चक" ने वर्णन किया था। (६) दिगम्बरों के पास प्राचीन साहित्य नहीं है। इनका प्राचीन से प्राचीन साहित्य षट्खण्डागमसूत्र, कषायप्राभृत, भगवती माराधना मोर कतिपयप्राभृत, जो कुन्दकुन्दाचार्यकृत माने जाते हैं, परन्तु उक्त कृतियों में विक्रम की षष्ठ शती से पहिले को शायद ही कोई कृति हो । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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