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________________ १०४ ] [ पट्टावली -पराग रेवती इन तीनों में से कोई भी एक नक्षत्र हो सकता है, परन्तु स्वाति तो किसी हालत में नहीं आ सकता । माघ सुदी पंचमी के दिन सोमबार होने की बात ताम्रपत्र में लिखी थी, परन्तु शक संवत् ३८८ के समय में वार शब्द का भारतवर्ष में प्रयोग हो नहीं होता था । भारतीय साहित्य में विक्रम की नवमी शती के बाद में "वार" शब्द का प्रयोग होने लगा है इन बातों के आधार पर हमने ताम्रपत्र को जाली होने की सम्भावना की थी, वह सत्य प्रमाणित हुई । कुछ समय के बाद "जैन शिलालेख संग्रह" का तृतीय भाग मिला श्रौर डा० श्री गुलाबचन्द्र चौधरी एम. ए. पी. एच. डी., आचार्य की प्रस्तावना पढ़ी तो मर्करा - ताम्रपत्र के सम्बन्ध में उनका निम्नलिखित अभिप्राय पाया । उसमें चौधरी महोदय लिखते हैं : "कुछ विद्वान् मर्करा के ताम्रपत्रों ६५ को प्राचीन ( सन् ४६६ ई० ) मानकर देशीयगण कोण्डकुन्दान्वय का अस्तित्व एवं उल्लेख बहुत प्राचीन मानते हैं, पर परीक्षण करने पर उक्त लेख बनावटी सिद्ध होता है तथा देशीयगरण की जो परम्परा वहां दी गई है, वह लेख नं० १५० के बाद की मालूम होती है ।" श्रीयुत् चौधरी ने अपने कथन के समर्थन में स्वर्गीय बी. एल. राइस महोदय द्वारा सं० १८७२ में " इण्डियन एण्टिक्वेरी" ( भाग १ पृ० ३६३ - ३६५ ) में मूल तथा अनुवाद के साथ प्रकाशित करवाये गए इन ताम्रपत्रों के सम्बन्ध में व्यक्त किये गए अभिप्राय को टिप्पण में उद्धृत किया है जिसका सारांश मात्र यहां देते हैं : बर्जेस महाशय का कथन है कि ( मेकेन्जी कलेक्शन) के आधार पर "लेख का संवत् विल्सन सा० के शक संवत् है, पर ज्योतिष शास्त्र के आधार पर उक्त संवत् के दिन "सोमवार और नक्षत्र स्वाति" लिखा है, वह ठीक नहीं । "वार बुध और नक्षत्र उत्तराभाद्रपद" होना चाहिए था । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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