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प्रथम-परिच्छेद ]
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शिवभूति को उसके गुरु तथा संघ ने अन्य निह्नवों की तरह संघ से बहिष्कृत नहीं किया था, बल्कि वह स्वयं नग्न होकर चला गया था। यही कारण है कि सूत्रोक्त निह्नवों की नामावलि में इनका नाम सम्मिलित नहीं किया । भाष्यकार तथा टीकाकारों ने इन्हें निह्नव ही नहीं "मिथ्यादृष्टि" तक लिख डाला है। इसका कारण यह है कि तब तक दोनों परम्परामों के बीच पर्याप्त मात्रा में कटुता बढ़ चुकी थी। दिगम्बर प्राचार्य "देवनन्दी" ने केवली को कवलाहारी मानने वालों को "सांशयिक मिथ्यात्वी" ठहराया, तब जिनभद्र आदि श्वेताम्बर प्राचार्यों ने "देवनन्दी" के अनुयायियों को भी मिथ्या दृष्टि करार दिया था। यह आपसी तनातनी छठवीं शती से प्रारम्भ होकर तेरहवीं शती तक अन्तिम कोटि को पहुँच चुकी थी।
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