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________________ कुन्दकुन्द के गुरु प्राचार्य श्री कुन्दकुन्द के दीक्षा- गुरु श्रथवा श्रुतपाठक- गुरु कौन थे, इस विषय में भी विद्वान् एकमत नहीं हैं | श्रवणबेलगोला के ४०वें लेख के दो पद्यों में कुन्दकुन्द के पूर्ववर्ती कुछ आचार्यों के नाम दिये हैं, जो इस प्रकार हैं : "मूल संघ में नन्दी संघ था और नन्दी संघ में बलात्कार गण उस गरण में पूर्वपदों का अंश जानने वाले श्री माघनन्दी हुए । माघनन्दी के पद पर श्री जिनचन्द्रसूरि हुए और जिनचन्द्र के पद पर पंचनामधारी श्री पद्मनन्दी मुनि हुए।" इस लेखांश से इतना ज्ञात होता है कि 'कुन्दकुन्द के गुरु माधनन्दी और गुरु जिनचन्द्रसूरि थे। इसके विपरीत पट्टावली में माघनन्दी के अंतेवासी का नाम गुणचन्द्र लिखा है और उसके शिष्य अथवा उत्तराधिकारी के रूप में कुन्दकुन्द का वर्णन किया है । कुन्दकुन्द कृत “पंचास्तिकाय प्राभृत" के व्याख्यान में श्री जयसेनाचार्य ने पद्मनन्दी जिनका नामान्तर है ऐसे कुन्दकुन्द को कुमारनन्दी सैद्धान्तिक देव का शिष्य बताया है । श्रुतावतार कथा में प्रबलि के बाद माघनन्दी का श्रौर उनके बाद धरसेन आदि प्राचार्यों का वर्णन किया है, माघनन्दी का नहीं, न माघनन्दी के बाद गुणचन्द्र और कुमारनन्दी के नामोल्लेख हैं । श्रवणबेलगोला के लेखों में कुन्दकुन्द के गुरु का उल्लेख दृष्टिगोचर नहीं होता, किन्तु राजा चन्द्रगुप्त के वर्णन के बाद सीधा कुन्दकुन्द का वर्णन किया है । परम्परा का वर्णन भी कुन्दकुन्द से ही प्रारम्भ किया है, अर्थात् नन्दी संघ के प्रधान Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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