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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह लताको निवार्थ सं० १७१८ आसू सुदी १० सोमवार बीकानेरमें (१४ बोलोंकी) व्यवस्था की थी, प्रस्तुत व्यवस्थापन हमारे संग्रहमें है। जिनमुख सूरि (पृ० २४६ से २५१) बोहरा गोत्रीय ( पीचानख ) रुपचन्द शाहकी भार्या रतनादे (सरुप दे) की कुक्षिसे आपका जन्म हुआ था। आपने लघुवयमें दीक्षा ग्रहण की थी। सं० १७६२ आषाढ़ शुक्ला ११ को सूरतमें जिनचन्द सूरिने आपको स्वहस्तसे श्री संघ समक्ष गच्छनायक पद प्रधान किया था। उस समय पारख सामीदास, सूरदासने पद महोत्सव बड़े धूमसे किया था । रात्रिजागरण श्रावकस्वामीवात्सल्य यति वस्त्र परिधापनादिमें उन्होंने बहुत-सा द्रव्य व्ययकर भक्ति प्रदर्शित को। सं० १७८० के ज्येष्ठ कृष्णाको अनशन आराधन कर रिणीमें जिनभक्ति सूरजीको अपने हाथसे गच्छनायक पद प्रदानकर स्वर्ग सिधारे । श्री संघने अन्त्येष्टि क्रियाके स्थानपर स्तूप बनाया और उसकी माघ शुक्ला षष्टीको जिनभक्तिसूरिजीने प्रतिष्ठा की थी। आपके रचित जेसलमेर-चैत्यपरिपाटी स्तवनादि एवं गद्य (भाषा) में (सं० १७६७ में पाटणमें रचित ) जेसलमेर श्रावकोंके प्रश्नोंके उत्तरमय सिद्धान्तीय विचार ( पत्र ३५ जय० भ०) नामक ग्रन्थ उपलब्ध है। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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