SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काव्योंका ऐतिहासिक सार जिनभक्तिसूरि (पृ० २५२) सेठिया हरचन्दकी पत्नी हरसुखदे की कुक्षिसे आपका जन्म हुआ था । आपने छोटी उम्रमें ही चारित्र लेकर सदगुरुको प्रसन्न किया था। जिनसुख सूरिजीने आपको सं० १७७६ ज्येष्ठ कृष्णा तृतीयाको रिणीमें स्वहस्तसे गच्छनायक पद प्रदान किया था। उस समय रिणी संघने पद-महोत्सव किया। आपके रचित कई स्तवनादि प्राप्त हैं। जिनलाभरि (पृ० २६३ से २६६ एवं ४१४ से ४१६) विक्रमपुरनिवासी बोथरे पंचाननकी धर्मपत्नी पदमा दे ने आपको जन्म दिया। आपने लघु वयमें जिनभक्ति सूरिजीके पास दीक्षा ग्रहण की। आपके गुणोंसे प्रसन्न होकर सूरिजीने मांडवी बंदरमें आपको अपने पदपर स्थापन किया था । सं० १८०४ भुज, वहांसे गुढ़ होकर १८०५ में जैसलमेर पधारे, वहां १८०८।१० तक रहे। उसके पीछे बीकानेरमें ( १८१० से १८१५ तक) ५ वर्ष रहकर सं० १८१५ को वहांसे बिहारकर गारबदेसर शहरमें (१८१५) चोमासा किया। वहां ८ महीने विराजनेके पश्चात् (मि० वि० ३) विहारकर थली प्रदेशको वंदाते हुए जैसलमेरमें प्रवेश किया। वहां (१८१६-१७-१८-१९) ४ वर्ष अवस्थितीकर लोद्रवे तीर्थमें सहस्त्रफणा पार्श्वनाथजीकी यात्रा की। वहांसे पश्चिमकी ओर विहारकर गोडीपार्श्वनाथकी यात्रा कर Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy