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________________ २८ _ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पाटणसे विहार कर जिनरतन सूरिजी पाल्हणपुर पधारे, वहां संघने हर्षित हो उत्सव किया। वहांसे स्वर्णगिरिके संघके आग्रहसे बहां पधारे । श्रेष्ठिपीथेने प्रवेशोत्सव किया, वहांसे मरुस्थलमें विहार करते संघके आग्रहसे बीकानेर पधारे , नथमल वेणेने बहुत-सा द्रब्य व्यय कर (प्रवेश-) उत्सव किया, वहांसे उग्र विहार विचरते वीरमपुरमें (सं० १७०१ ) में संघाग्रहसे चतुर्मास किया। चतुर्मास समाप्त होते ही बाहड़मेर (सं० १७०२) में आये, संघके आग्रहसे चतुर्मास वहीं किया । वहांसे विहार कर कोटड़में(सं०१७०३) चौमासा किया । चौमासा समाप्त होनेपर वहांसे जेसलमेरके श्रावकोंके आग्रहसे जैसलमेर पधारे, शाह गोपाने प्रवेशोत्सव किया एवं याचकों को दान दे अपनी चंचल लक्ष्मीको सार्थक की। जेसलमेरके संघका धर्मानुराग और आग्रह सविशेष देख आचार्य श्रीने चार चतुर्मास ( सं० १७०४ से १७०७ तक ) वहीं किये । इसके पश्चात् आगरे संघके अत्याग्रहसे वहां पधारे। संघ बड़ा हर्षित हुआ, मानसिंहने बेगमकी आज्ञा प्राप्त कर प्रवेशोत्सव बड़े समारोहसे किया। बतग्रहणादि धर्मध्यान अधिकाधिक होने लगे। तीन चौमासा (सं० १७०८ से १७१०) करनेके पश्चात् चौथे चतुर्मासको (सं० १७११) भी संघने आग्रह कर वहीं रखे। वहां अशुभ कर्मोदयसे असमाधि उत्पन्न हुई। अषाढ़ शुक्ला १० से तो वेदना क्रमशः वृद्धि होनेसे औषधोपचार कराया गया, पर निष्फल देख आपने अपने आयुष्यका अन्त ज्ञात कर अपने मुखले अनशनोच्चार एवं ८४ लाख जीक्योनियोंसे क्षमत क्षमणा कर समाधिपूर्वक श्रावण बदी ७ सोमवारको Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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