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काव्यों का ऐतिहासिक सार जिनरतन सूरि
( पृ० २३४ से २४७ )
मरुधर देशके सेरुणा ग्राममें ओशवाल लुणिया गोत्रीय तिलोकसी शाहकी पत्नी तारा देवीकी* कुक्षिसे ( सं० १६७० ) में आपका जन्म हुआ था । आठ वर्षकी लघुवयमें ही आपको वैराग्य उत्पन्न हुआ और जिनराज सूरिके पास अपने बान्धव और माताके साथ ( सं० १६८४ ) में दीक्षा ग्रहण की। थोड़े दिनोंमें ही शास्त्रोंका अध्ययन कर देश- विदेशों में बिहार कर भव्य जनोंको प्रतिबोध देने लगे । आपके गुणोंसे योग्यताका निर्णय कर जिनराज सूरिजीने. अहमदाबाद बुलाकर आपको उपाध्याय पढ़से अलंकित किया । इस समय जयमल, तेजसीने बहुत-सा द्रव्य व्यय कर उत्सव किया था ।
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सं० १७०० में जिनराजलूरिजीका चतुर्मास पाटण था । उन्होंने स्वहस्तसे जिनरतन सूरिजीको पद स्थापना की, और अषाढ़ शुक्का ६ को वे स्वर्ग सिधारे ।
चतुर्मास के समय में दोसी माधवादि ने ३६००० जमसाइ व्यय की, आगरेमें १६ वर्षकी अवस्था चिन्तामणि शास्त्रका पूर्ण अध्ययन किया, पालीमें प्रतिष्ठा की, राउल कल्याणदास और राय कुंवर मनोहरदास के आमन्त्रणसे जैसलमेर पधारे, संघवी धाहरूने प्रवेशोत्सव किया । आपके शिष्य-प्रशिष्यों की संख्या ४१ थी ।
x १ नाहटा थे ( देखो पृ० २४६ में )
* गीत नं० ५ में तेजस हैं। देखो पृ० २४७ x गीत नीः ४ में सदामी लिखा है ।
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