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________________ २६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह इस प्रकार शासनका उद्योत करनेवाले गच्छ नायकके गुणकीर्तन रूप यह रास श्रीसार कविने सं० १६८१ अबाढ़ कृष्ण १३ को सेत्रावामें रचा। क्षेमशाखाके रत्नहर्षके शिष्य हेमकीर्तिने यह प्रबन्ध बनवाया। गच्छ नायकके गुणगान करते समय (वर्षा) भी अच्छी हुई। उपरोक्त रास रचनाके पश्चात् (सं० १६८६ मार्गशीर्ष कृष्णा ४ रविवारको आगरेमें सम्राट शाहजहाँसे आप मिले थे और वहां ब्राह्मणोंको वादमें परास्त किये एवं दर्शनी लोगोंके विहारका जहां कहीं प्रतिषेध था वह खुला करवा कर शासनोन्नति की। राजा गजसिंहजी, सूरसिंहजी, असरपखान, आलमदीवान आदिने आपकी बड़ी प्रशंसा की। - यह सवैये (पृ० १७३ ) से स्पष्ट है। गीत नं०५ में लिखा है कि मुकरबखान ने आपके शुद्ध और कठिन साध्वाचारकी बड़ी प्रशंसा की। ___ आपके रचित १ शालिभद्र चौ० २ गजसुकमाल चो० ३ चौवीसी ४ बीशी ५ प्रश्नोत्तर-रत्नमाला बीशी ६ कर्म बतीसी ७ शील बतीसी बालावबोध ८ गुणस्थानस्त और अनेक पद उपलब्ध हैं। नैषधकाव्य पर भी आपके ३६ हजारी वृत्ति बनानेका उल्लेख है। डेकन कालेजमें इसकी दो प्रतियां विद्यमान हैं।* * हमारे संग्रहके जिनराज सूरि प्रबंधमें विशेष बातें यह हैं :___ आपने ६ मुनियोंको उपाध्याय, ४१ को वाचक पद और १ साध्वीजी को प्रवर्तनी पद दिया, ८ बार शत्रुञ्जयकी यात्रा की, पाटणके संघके साथ गौडीपार्श्वनाथ, गिरनार, आबू, राणकपुरकी यात्रा की, नवानगरके Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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