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काव्योंका ऐतिहासिक सार
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स्वयं संथारा उच्चारण कर सं० १६७४ पौष शुक्ला १३ को प्रथम देवलोक सिधारे । ___ संघने एकत्र हो पट्टधरके योग्य कौन है इसका विचारकर राजसमुद्रजीको योग्य विदित कर उन्हें गच्छनायक और सूरिजीके अन्य शिष्य सिद्धसेन मुनिको आचार्य पदसे विभूषित किये। ये दोनों जिनराज सूरि और जिनसागर सूरिजीके नामसे प्रसिद्ध हुए। पदमहोत्सवपर संघवी आसकरण चोपड़ेने बहुत द्रव्य व्यय किया । १६७४ फाल्गुन शुक्ला ७* को पदस्थापना बड़े समारोहसे हुई।
गच्छनायक पद प्राप्तिके अनन्तर आपने अनेक जगह विहारकर अनेकानेक धर्म प्रभावनायें की, जिनमेंसे कुछ ये हैं :-(सं० १६७५ मिगसर सुदी १२ को) जेसलमेर (लोद्रवे) गढ़में (भणसाली थाहरूकारित) सहस्त्रफणापार्श्वनाथकी प्रतिष्ठा की। (सं० १६७५ वै० शु० १३ क) शत्रुजय पर (सोमजी पुत्र रुपजीकारित) अष्टमोद्धारके ७०० प्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा की। भाणवटमें बाफणा चांपशी कारित अमीझरा पार्श्वनाथजीकी प्रतिष्ठाकी,मेड़तेमें चौपड़ा असकरण कारित शान्ति जिनालयकी (सं० १६७७ जे० कृ०५) प्रतिष्ठाकी। अम्बिका देवी एवं ५२ वीर आपके प्रत्यक्ष थे, सिन्धमें विहारकर (पांच नदीके) पाँच पीरोंको आपने साधित किये। ठाणांग सूत्रकी विषम पदार्थ वृत्ति बनाई।
* प्रबन्धमें उपाध्याय सोमविजयका नाम भी है।
+ प्रबन्धमें द्वितीया लिखा है। सूरिमन्त्र पुनमीया हेमाचार्यने दिया लिखा है।
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