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वा० पदमहेम गीतम् पंच परमेष्टि तणइ ध्यानइ, विरुई गति मिगली करि कांनइ । अम्मावसि भादव मासइ, मध्यानइ पहुतासुर वासइ ।१०।१०। भाव भगति गुरु पय पूनइ, तसु आस्या रंग रली पूजइ । पुत्र कलत्र धन परिवार, गुरु नामई दिन दिन जयकार १०प०। उदय सदा उन्नति कीजइ, परतिख दरसन भगतां दीजइ । महियलि महिमा विस्तारउ, सेवकनइ साहिब संभारउ ।१२।१०। चित्त तणी चिंता चूरउ, सुख सम्पत्ति मन चितित पूरउ । "सेवकसुन्दर' इम बोलइ, तुझ सेवा सुरतरु सम तोलइ ।१३।१०। इति श्री पदमहेम गणि वाचक गीतं, मं. रेखाँ पठनार्थ ॥शुभं भवतु।।
चन्द्रकीर्ति कवित । पामीजै परमत्थ अत्थ पिण सयणा पावै,
पामी सब सिद्धि ऋद्धि पिण आफे आवे । पामे सोस सकज सखर सुख सेज सजाई,
पामे तेज पडूर वलि बल बुद्धि बड़ाई। कहि 'सुमतिरंग' सुण प्राणिया, ग्रहि २ गुरु गुण गाइये,
श्री चन्द्रकीति' सदगुरु जिसा, प्रभु इसा कद पाइये ॥१॥ संवत सतरे-सात पोष बदी पडिवा पहली ।
अणशण लेइ आप, वली उत्तम मति वहिली ॥ नगर 'बिला?' माहि, कांम गुरु अपणो कीधो ।
___ गीत गान गावतां, सुगुरु नो अणसण सीधो । शुभ ध्यान ज्ञान समरण करि, सुर सुलोक जइ संचरै।
__ वदै 'सुमतिरंग' हियडा विचै, घडी घडी गुरु संभरै ॥२॥
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