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________________ ४२० ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह वा० पदमहेम गीतम् - -*--- ढाल:-विलसइ ऋद्धि समृद्धि मिली, ए ढालः । 'पदमहेम' बाचक वैदइ, ते भवियण दिन-दिन चिरनंदइ । सुरतरु सम वडि गुरु कहियइ, जसु नामइ मन वंछित लहियइ ११५० 'गोलवछा' वंसइ छाजइ, खरतर गछि सुरमणि जिम राजइ। आगम अरथ तणा जाण, पालइ जिणवर केरी आण राप० लघुवय जे संयम लीणउ, उपसम रस मधुकर जिम पीणउ । सुमति गुपति सहजइ पालइ,वलि दोष बयालिस नितु टालइ ३५० चरण करण सत्तरि सार, वलि धरइ महाव्रत ना भार । ध्यान विनय सिझाय करइ, इम असुभ करम मल दूरि हरइ ।४।१० (श्री) जिन वचनइ अनुसारइ, देसन करि भवियण नर तारइ । निरमल शोल रयण पालइ, पूरव मुनि मारग उजवालइ ।५।१०। युगप्रधान 'जिणचंद, गुरू, विहरइ महियलि महिमा पवरू । धन ते जिण सय-हथि दिख्या, सीखावी वलि संयम सिख्या ६०प०। धन 'चोलग' जसु कुलि आयड, धन धन 'चांगादे' जिण जायउ । 'तिलककमल' गुरु धन्न जयउ,जसु पाटइ दिनकर जिम उदयउ ७प०॥ व्रत सईतीस बरिस जोगइ, विहरी दिन दिन वधतइ जोगइ । ससि रस काय ससि वरिसइ,आया 'वालसीसर' चित हरिसइ।८।१०। अन्त समय जाणि नाणइ,बलि करि आराधन सुह झाणइ । पहर छ अणशण पाली, माया ममता दूरइ टाली ।।प। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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