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श्री दयातिलक गुरु गीतम्
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श्री दयातिलक गुरु गीतम्
राग-आसावरी सरद ससी सम सुहगुरु सोहइ, सयल साधु मन मोहइ ।
देसना वारिद जिम बरसइ, जन मयूर चित हरसइ रे ।। भाव स्युं भवीयण जण पणमउ, 'श्री दयातिलक' रिषराया ।
दीपंता तपकरि दिणयर जिम, नरवर प्रणमइ पाया रे ।शभा०। नवविध परिग्रह छंडि भली परि, संयम स्यु चितलाया ।
दोष बयाल निरंतर टालइ, मनमथ आण मनाया रे ।२। भा०। पंच महाव्रत रंगइ पालइ, पंच प्रमाद निवारई । . नितु नितु सील रयण संभालइ, भव सायर थी तारइ रे भा० चरण करण गुण सुहगुरु धारइ, आठ करम कुं वारइ ।
क्रोध मान मद तजइ मुनीसर, मुनिवर धर्म संभारइ ।४।भा०। "श्री क्षेमराज' पाटइ अति दीपइ, वादि विबुध जन जीपइ ।
वांणो श्रवणि सुहाणी छाजइ, खरतर गछि गुरु राजइ रे ।५।भा०। “वाल्हादे' उरि मानसरोवर, रायहंस अवयरिया ।
'वच्छा' कुल मंडण ए सुहगुरु,गुण गण रयणे भरिया रे ।६।भा०। पूरव मुनि नी रीति भली परि, आगम करिय विचारइ । जाणि करी सूधीपरिए गुरु, गुण गरुआना धारइ रे भा०।
इति श्री गुरु गीतं । (पत्र १ संग्रहमें) ...
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