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________________ ४१८ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह श्री जिनरतनसूरि गीतम् ढाल:-विलसे ऋद्धि समृद्धि मिली। श्री 'जिनरतनसूरिंद' तणी, महिमा जागइ जग मांहि घणी। जसु सेवा सारइ स्वर्गधणी, मन वंछित पूरण देव मणी ।११ जसु नामइ न डसइ दुष्टफणी, टलि जायइ अरियण जुड्या अणी । अहिनिसि जे ध्यावइ सुगुरु भणी, तसु कीरत वाधइ सहस गुणो ।२। निरमल व्रत सील सदा धारी, षट काया तणौ रक्षाकारी । _ कलियुग मई 'गौतम' अवतारो,गुण गावइ सहु को नरनारी ।। घसि केसर चंदन सुविचारी, फल ढोवइ नेवज सोपारी । विधि जे वंदइ आगारी, ते लच्छि तणा हुवइ भरतारी ।४। जसु जम्म नगर 'सेरूणाण', तिहां वसइ 'तिलोकसी' साहाणं । गोत्रइ अति निरमल लूणीयाणं, तसु घरिणी 'तारादे' विधि जाणं ॥५॥ जसु उयर सरोवर हंसाणं, तिण जायउ पुत्ररतनाणं । सोलह सइ सत्तरि वरसाणं, पुनवंत पुरष दीवाणं ।। चउरासीयइ चारित लीघउ, गुरुमुख उपदेस अमीय पीधउ । सुभकारिज सतरइसइ कीधउ, सहगुरु सइंह थि निज पट दीधउ 19 सतरइसइ इग्यार सही, श्रावण वदि सातमि सुगति लही। पग पूजण आवे जे उमही, गुरु आस्या पूरइ त्यां सबही !८ 'उग्रसेनपुरई' सदगुरु राजइ, जसु धुंभ तणी महिमा छाजइ । _ 'खरतर' श्री संघ सदा गाजइ, गुरु ध्यानइ दुखदोहग भाजइ हा श्री 'जिनराजसूरीस' तणउ, पाटोधर श्री 'जिनरतन' भणउ । महियल मई सुजस प्रताप घणउ, प्रहसमि ऊठी नित नाम थुणउ ।१० एहवा सदगुरु नइ जे ध्यावइ, चित चिंता तास सवे जावइ । दिन-दिन चढती दउलति पावइ, 'जिनचंद' सगुरुना गुण गावइ ।११॥ इति श्री जिनरतनसूरि गीतं (संग्रहमें, ६३ प्रति नं० १३ ) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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