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________________ श्रीजिनलाभसूरि विहारानुक्रम ४१५ विधि सुं गौड़ी-राय नै, वांदी कियौ विहार। गच्छपति चलि आया गुढे, चौमासौ चित धार ।।१०।। रहि चौमासौ रंग सुं, विहलौ करै विहार । माती धरा महेवची, वंदावी तिण वार ।।११।। नगर 'महेवै' आय नै, नमिवा नाकौड़ौ पास । जाये कीध 'जलोल' में, चित चोखै चौमास ॥१२॥ मिगसरमें वलि मलपिया, गज ज्यूं श्री गुरुराज । आवै 'आबू' अरचिया, जगनायक जिनराज ।।१३।। जस खाटै दाटै पिशुन, उर दुयणां पर दीध ।। __'बीलाई बहु रंग सुं,चतुर चौमासौ कीध ॥१४॥ "खेजड़लै' नै 'खारिये', रहिया वलि 'रोहीठ'। पिशुन किया सहु पाधरा, धरमें होता धीठ ॥१५।। "मंडोवर' महिमा घणी, 'जोधाणे' री जोइ । मुनिपति आया 'मेड़ते', हित सुं तिमरी होइ ।।१६।। च्यार महीना चैन सुं, झाझे जतने जार। 'जैपुर' आया जुगति सुं, सहिर बड़े श्रीकार १७॥ सहिर किनां सागे सरग, इलमें वसियौ आय । वरस थयौ वासर जितौ, वासर घड़ी विहाय ॥१८॥ हठ कीधौ घण हेत सुं, पिण नवि रहिया पूज। मुनि-पति जाय 'मेवाड़ में, वरतायो नामंज ॥१६॥ 'उदयापुर' हुंती अलग, कठिन अठा कोस । 'रिसहेस' नै रंग सुं, नमन कियौ निरदोष ॥२०॥ चलता 'उदयापुर' वले, गहिरा कर गहगाट । वीनति घणै विराजिया, "पालीवालै' पाट ॥२॥ अटकलता आसो अवस, निरख विचै 'नागौर। पिण मन बसियो पूज रै, सहिर भलो 'साचोर' ॥२२॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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