SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 609
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह तिण वरसे 'सूरेत' ना, असपति अवसर देख । तिडावै सहगुरु तुरत, लायक मूंकी लेख ॥२३॥ दया लाभ देखी घणौ, ऊपजतो उण देस । सुमति गुपति संभालता, पुर तिण कीध प्रवेश ॥२४॥ सरस वर जुग श्रावके, करतां नव नव कोड़। सुपरै सेवा साचवी, हित सुं होडा होड़ ॥२५॥ कर राजी श्रावक सकल, जग सगलै जस खाट । _ 'राजनगर' आया रहण, वहता पगवट वाट ॥२६॥ तिहां पिण तालेवर तुरत, उच्छव करै अपार । दोय वरस लगि राति दिन, सेवा कीधी सार ॥२७॥ मन थिर कर साथे थई, श्रावक सहु परिवार । सत्रुजनी सेवा करे, गुरु चढ़िया गिरनार ॥२८॥ उतर तिहां थी आविया, 'वेलाउल' वंदाय । महिमा मोटी 'मांडवी', पूजण सद्गुरु पाय ॥२६॥ कोडी-धज तिण नगर में, लखपति तणा लंगार । सहु श्रावक सुखिया जिहां, वारधि सुं विवहार ॥३०॥ वरस लगै तिहां वायर्यो, धन अगिणत धर्म काज। _ चोखे दिन 'भुज' चालिया, राजी हुए गुरुराज ।।३१।। 'भुज' तणे श्रावक भलो, सेवा कीध सवाय। ___भाग बली जिहां संचरै, थट सगला तिहां थाय ॥३२॥ इण विधि अट्ठारै वरस, दीन (दिन दिन?) नव नव देस । परचिया श्रावक प्रघल, वाणी तणै विशेष ॥३३॥ हिव वहिला विनती सुणी, करिज्यो पूज प्रयाण । 'बीकानेर' वंदाविज्यो, सेवक अपणा जाण ||३४।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy