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________________ ४०० ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ॥श्रीजयसागरोपाध्याय प्रशस्तिः॥ संवत् १५११ वर्षे श्री जिनराजसूरि पट्टालङ्कारे श्रीमजिनभद्र सूरि-पट्टालङ्कार राज्ये ॥ श्री उज्जयन्त शिखरे, लक्ष्मीतिलकाभिधो वर विहारः । 'नरपाल' संघपतिना, यदादि कारयितुमारेभे ॥ १ ॥ दर्शयति तदाचाम्बा, श्रीदेवी देवतां जन समक्षम् । - अतिशय कल्पतरूणा, 'जयसागर' वाचकेन्द्राणाम् ।। २॥ 'सेरीषकाभिधाने', प्रामे श्री पार्श्वनाथ जिन भवने । श्री शेषः प्रत्यक्षो येषां पद्मावती सहितः ।। ३ ।। श्री 'मेदपाट' देशे, 'नागइह' नामके शुभ निवेशे । - नवखण्ड पार्श्व चैत्ये, सन्तुष्टा शारदा येषाम् ॥४॥ तेषां श्री 'जिन कुशल सूरि' प्रमुख, सुप्रसन्न देवतानाम् पूर्व देशवर्ति 'राजद्रह' नगरोद्दण्ड विहारादि । स्थानोत्तर दिग्वर्ति नगरकोटादि' स्थान पश्चिम दिग्वत्र्ति वलपाटक 'नागद्रहा'-दिषु । राज सभा समक्षं निर्जित पूर्व भट्टाद्यनेक वादि स्तंबेरमाणां। विरचित 'सन्देह दोलावली वृत्ति' लघु 'पृथ्वीचन्द्र चरित्र' 'पंच पर्वी' ग्रन्थ रत्नावली प्रमुख मेहा वृषभनाथ स्तवः श्री 'जिन वल्लभ सूरि' कृत 'भावारिवारण स्तव वृत्ति' ।संस्कृत प्राकृत बन्ध स्तवन सहस्त्राणाम् स्थापितानेक संघपतीनां कवित्व कला निर्जित सुर गुरूणां पाठितानेक शिष्य वर्गाणाम् इत्यादि Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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