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जिनोदयसूरि विवाहलउ
३६६ सिर 'लोगहियायरि' यर५७ अप्पिय५८ निय पय५६ सिख्म६० ।
. संपत्तउ सुरलोयि६१ पहु, बोहेवा सुर वखा६२ ॥४०॥ धन्न६३ सो वासरो पुन्न भर भासुरो,
साजि६४ वेला सही अमिय ६५वेला । जत्थ निय सुहगुरु भाव कप्पतरू,
भत्ति गाइज्जए हरिस हेला६६ ॥४१॥ सहलु६७ मणुयत्तणं ताण लोयाण, लहइ ते सुक्ख संपत्ति भूरि । सुद्ध६८ मण संठियं थूभ६६ पड़िभट्ठियं,
जेय झायंति 'जिणउदयसूरि' ॥४२।। एहु सिरि 'जिणउदयसूरि' निय सामिणो,
__ कहिउ मंइ चरिउ७० अइ मंद७१ बुद्धि । अम्ह सो दिक्ख गुरु देउ सुपसन्नउ,
७२६सण नाण४चारित सुद्धि ॥४३।। एहु गुरु राय वीवाहलउ जे पढइ,
जे सुणइ७३ जे थुणइ जे दियति । उभय लोगेवि ते लहई७४ मणवंछियं,
"मेरुनंदन"७५ गणि इम भणंति ॥४४॥ ॥ इति श्री जिनोदय सुरि गच्छनायक बीवाहलउ समाप्त ।।
५७b लोगह आयरिय d लोग आपरिय ५८b आपिय ५९b निर्यानय d नियमय ६०bc b सिक्ख ६१b सुरलोय d सुरलोड ६२b c d लक्ख ६३a d धनु ६४b साज ६५ad वेल ६६३ हेल ६७b सहल d सुहल ६८d सुहमणि सढियं ६९d एति ७०d वरिउ ७१b इप ७२० देसण ७३ जे गुणइ जे सुगंति cd जे गुणइ जे सुण जे हियंति (d देयन्ति) ७४ लहय ७५b मेरुनन्दण ।
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