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________________ ३७४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह अत्र आख्यान कवित्त । 'मारुयारि' कइ देसि, सहिर 'पल्लीपुर' अक्टुं । ___ तहां हइ पुर नाह, वं(बं?)भ 'जस्सोहर' दक्खं ।। 'खेरनगर' 'महेश', 'गुहिल-वंशी' हइ राजा । मारण 'पल्लीनगर', चट्यउ सो करत दिवाजा ॥ तिनवार 'बंभ जस्सोहरू', वदइ क्युं हि 'पल्ली' रहइ । ___ कोऊ र आणि आषाढ़ सिधि, 'ज्ञानहर्ष' कवि यूं कहइ ।।२५।। 'पल्लिनगर' चउमास, रहे खरतर गच्छ नायक ।। तिन गुरु कउ जस बहुत सुण्यउ, विप(प्र ? लोकां वाइक ॥ ताकउ नाम 'जिनदत्त सूरि', मंत्र धारी सूर वर । पंच नदी पंच पीर, साधि लिद्धउ सुर कउ वर ।। 'माणभद' जक्ख हाजर रहइ, तरउ खरउ सेवा करइ । 'ज्ञानहर्ष' कहइ गुरु कित्त बहु, पार न सुर गुरु नहु करइ ॥२६॥ गुरु पहुंचे 'मुलतान', पीर पंच आए नाम सुणि । पत्थर पारे पीर, गुरु वरसे कंचण मणि ।। पीर ग्रहे गुरु पाइ, संघ पइसारउ कीनउ । मूयउ मुगल कउ पूत, जीउ गुरु घाले दीनउ ।। सहु लोग देखि अचरिज भए, इन गुरुका अवदात बहु । 'ज्ञानहर्ष' कहत 'जिणदत्त' की, करत देव कीरत सहु ॥२७॥ गुरु करत बखाण, धरे आगे चउसठि गिणी। छोटेसे पाटले, आइ बइठी तिहां जोगिणि ।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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