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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
अत्र आख्यान कवित्त ।
'मारुयारि' कइ देसि, सहिर 'पल्लीपुर' अक्टुं ।
___ तहां हइ पुर नाह, वं(बं?)भ 'जस्सोहर' दक्खं ।। 'खेरनगर' 'महेश', 'गुहिल-वंशी' हइ राजा ।
मारण 'पल्लीनगर', चट्यउ सो करत दिवाजा ॥ तिनवार 'बंभ जस्सोहरू', वदइ क्युं हि 'पल्ली' रहइ ।
___ कोऊ र आणि आषाढ़ सिधि, 'ज्ञानहर्ष' कवि यूं कहइ ।।२५।। 'पल्लिनगर' चउमास, रहे खरतर गच्छ नायक ।।
तिन गुरु कउ जस बहुत सुण्यउ, विप(प्र ? लोकां वाइक ॥ ताकउ नाम 'जिनदत्त सूरि', मंत्र धारी सूर वर ।
पंच नदी पंच पीर, साधि लिद्धउ सुर कउ वर ।। 'माणभद' जक्ख हाजर रहइ, तरउ खरउ सेवा करइ ।
'ज्ञानहर्ष' कहइ गुरु कित्त बहु, पार न सुर गुरु नहु करइ ॥२६॥ गुरु पहुंचे 'मुलतान', पीर पंच आए नाम सुणि ।
पत्थर पारे पीर, गुरु वरसे कंचण मणि ।। पीर ग्रहे गुरु पाइ, संघ पइसारउ कीनउ ।
मूयउ मुगल कउ पूत, जीउ गुरु घाले दीनउ ।। सहु लोग देखि अचरिज भए, इन गुरुका अवदात बहु ।
'ज्ञानहर्ष' कहत 'जिणदत्त' की, करत देव कीरत सहु ॥२७॥ गुरु करत बखाण, धरे आगे चउसठि गिणी।
छोटेसे पाटले, आइ बइठी तिहां जोगिणि ।।
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