________________
श्रीजिनदत्तसूरि अवदात छप्पय ३७३
कवि ज्ञानहर्ष कृत श्रीजिनदत्तसूरि अवदात छप्पय
-
-
.........''बत ज्ञान रिक्ख थिर ।।२।। जनम भयउ जातकउ, नामदियउ चाचक ताकउ ।
दुआदस वरस जब भए, कर्यउ राज 'कनवज' अवाकउ ।। चढे 'सीह' 'द्वारिका', जाति करणण कुं निश्चल ।
___ लयउ कुंयर 'आसथान', राणी जादुकउ अट्टल ।। राव 'वरनाथ' साहसीक मणि, जाति चले ‘सीह 'द्वारिका' ।
__ 'ज्ञानहर्ष' लहे पंचसै सुहड़, परभु पर दल मारका ॥२२।। अस्सुवार सइ पंच लेहु, 'सीहउ' यू चल्ले ।
पट्ट थप्पि लहु अनुज, सुहड़ संग रक्खे भल्ले ।। सबहु सुं करि भिक्ख,....स 'द्वारामति' डेरे ।
दिद्ध 'सीह' महाराज, सुप्भ(ब्ब?) महुरत सबंरे । 'आसथान' कुंवर आसाढ़ सिधि, लेहु संग दरकूच चलि ।
'ज्ञानहर्ष' कहइ तिस वार बिच, भयउ इक्क अचरिज्ज इलि ॥२३॥ 'सिंह' आए 'मरुदेस', सुपन इक देख्यउ रानी।
वृक्ष पाहर सब देस, हम्म अन्तरि बीटानी ।। वयण सुणि 'सीह' यू, चोट वाही हुइ समुहां ।
दिवस ऊगत 'सीह' कहत, हुइगउ केर अपणउ जहां तहां ॥ मम करहु राणो क्रोध हम, नींद गमावण हेत हूय ।
ज्ञान हर वदति तिस हेत करि, भए राव वर सव्व भूय ।।२४।।
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org