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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पारतंतुविहि विसयसुहु, वीरजिणेसर वयणु।
जिणवइ सूरि गुरु हिव कहओ, मिच्छइ अन्नुन्न कवणु ॥३१ ।। धन्न तईपुरवर पट्टगई, धन्न ति देश विचित्त ।
जहिं विहरइ जिणवइसुगुरू, देसण करइ पवित्त ॥३२॥ कवण सु होसइ देसडओ, कवण सु तिहि स मुहुत्त ।
जहिं बंदिसु जिणवइ सुगुरु, निसुण सुधम्मह तत्त ॥३३॥ सल्लुद्धार करेसु हउ, पालि सुदड्ढ सम्मत्तो।
नेमिचंद इम विनवइए, सुहगुरु-गुण-गण-रत्त(तो) ॥३४॥ नंदउ विहि जिण मंदिरहि, नन्दउ विहि समुदाओ।
नंदउ जिणपत्तिसूरि गुरु, विहि जिण धम्म पसाओ ॥३५॥ इति नेमिचंद भंडारि कृत गुरु गुणवर्णन ॥
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