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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
'पारणि पुंजाउत ' आवइ, 'सीरोही' सोह चडावइ ।
अभिनव उदयो 'तेजपाल, प्रागवंश तिलक 'तेजपाल ' ॥५०॥ राय 'अखयराज' बडह बीर, तेहनि घरि जेह वजीर ।
ते शाह तिहां किणि आवइ, गुरुनि वंदइ मनि भावइ || ५१|| करइ यात्र 'विमल गिरी' केरी, जिणि भाजइ भवनी फेरी ।
आवइ 'कमीपुर' फेरी, ढमकावर ढोल नफेरी ॥५२॥ ॥ पूज्य जी नइ कहइ परधान, एतलुं दिउँ मुझनिं मान ।
करि मेल वधारो वानो, गुरुराज कयुं ए मानो ॥५३॥ गुरु कहइ अम्ह मनि नहीं खेस, टालउ तुम्हे सयल किलेस | तिहां लिखित भाषित करि लीधा, साहि सहु को निंदीधा || ५४ ॥ ए लिखित थकी जे चूकइ, तेहनिं जगदीसर मुकइ |
मांहो मांहि मेल कराव्यउ, पुण्यइ भंडार भराव्यउ ।। ५५ ।। आचारज 'विजयादि', गुरु जी वांद्या आणंदइ ।
श्री 'नंदीविजय' उवझाय, जेहनु मोटउ भडवाय ॥ ५६ ॥ ॥ 'धनविजय' 'धर्मविजय' नाम, वाचक दुइ अति अभिराम ।
इत्यादिक मुनि जग जाण्या, पुर्णि गुरु चरणे आण्या ||५७|| साह कहइ 'सीरोही' पधारउ, बलि वीनति ए अवधारो |
'तेजपाल' सीरोही आवइ, 'श्रीविजय देव' गुण गाव३ ॥ ५८ ॥ दोहा
'राजनगर' थी विचरता करता संघ कल्याण ।
'यदेसि गुरु आविया, जिहां राजा 'कल्याण' ॥ ५६ ॥
'विजयदेव सूरि' वड वखत, वाचक पंच समेलि ।
'ईडरगिरि' शिर 'ऋषभ जिन', भेटयइ हुइ रंग रेलि ||६०||
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