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विजयसिंहसूरि विजयप्रकाश रास ३५६ 'इडरगढ़' मुख मंडणउ, साहिब सुख दातार ।
___ 'गुणविजय' कहइ मंगल करउ, 'सुमंगला' भरतार ।।६।। 'रायदेश' रलिआमणउ' 'ईडरगढ़' सिरदार ।
घरि २ उत्सव अति घणा, फाग रमइ नरनारि ॥१२॥
ढाल-फागनी तपगछको गुरु राजीयो, रमइ पुण्यनुं फाग ललना। परणी समता सुन्दरी, जिनआंणा वर वाग । ललनां
पुण्य फाग गुरु जी रमइ ॥६३।। पहिलं पाप पखालवा, नेम तप निर्मल नीर ।ल।
चुआं चंदन चित भलु, छांटइ चारित्र चीर लापु०६४॥ परंपरा आगम वडउ, चढवा तुंग तुरंग ल०)
ज्ञान ध्यान नेजा घणा, लीला लहरि तरंग ल०६५।। सकल संघ सेना मिली, वाजइ जग जस ढोल ।ल।
___वाचक पंडित उंबरा, सूरा साधु अडोल ल० । पु०६६।। इक दिनि गुरुनि वीनवइ, 'तपागछ' परिवार ल०।
एक अम्हारी वीनति, अवधारउ गणधार ल० (पु० । ६७॥ तपगछ मेल तुम्हे करी, कीधु उत्तम काज ।ल।
___ हवइ एक इहां थापीइ, आचारिज युवराज ॥लापु०६८॥ आज अंबा रायण फल्या, आयउ मास वसंत ।
___ चंपक केतक मालती, वासंती विकसंत लपु०॥६६॥ तिम अम्ह आशा वेलडी, सफल करउ मुनिराज ।ल।
'कनकविजय' वाचक वरु, करउ पटोधर आज ॥लापु०७०॥
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