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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह - - - .- ~ ~ ~ 'गुण विजय' कहइ श्री सिद्धगिरि', ध्यान धरत गत पाप । ___ बलवन्त बइठो जिहां धणी, 'बाहूबलि' नुं बाप ॥ २६ ।।। जे नर घरि बइठा करइ, श्रीशचुंजय जाप । - 'गुणविजय' कहइ तेहना टलइ, सहस पल्योपम पाप ।। ३० ।। 'गुणविजय' कहइ शेजूंज तणी, आखडी मोटो मर्म । लाख पल्योपम संचिया, टलइ निकाचित कर्म ।। ३१ ।। "गुणविजय' कहइ 'विमलाचलिं', पंचकोड़ि परिवार । चैत्री दिन केवल लाउ, 'पुण्डरीक' गणधार ॥३२॥ 'गुणविजय' कहइ जग मां बडा, 'शत्रुजय' 'गिरिनारि'। इक शिरि 'आदिसर' चव्यङ, इक शिरि 'नेमि' कुमार ।। ३३ ।। ढाल-राग सामेरी 'शत्रुजय' जिनवर वंदइ, गुरुजी निज पाप निकंदई। . . दुइ 'दीव' करी चोमास, पूरी 'सोरठनी' आस ॥ ३४ ॥ 'हीरजी' नी परि पूजाणो, तिहां 'तप गछ' केरो रांणउ । 'गिरनार' देखी(दुःख) मेटइ, राजलि (धि?) राजा जिन भेटइ ॥३५॥ वलि 'नवइ नगरि' गुरु आवइ, सामहिआं संघ करावइ । जामी दुइ सहस वखाणी, इक साम्हेलि खरचाणी ॥ ३६ ।। तिहां थी ववि (चलि?) पूज्य पधारइ, शत्रुजय' देव जुहारइ । __ 'खंभाइति' अति उल्लासि, तिहां थी आव्या चउमासइ ॥ ३७ ।। तिहां त्रिण प्रतिष्ठा सार, रुपइआ चउद हजार । खरच्या 'खंभाइत' मांहि, श्रीसंघ अधिक उछाहिं ॥ ३८ ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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