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________________ ३५४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह 'केसा' मुनि तणुं नाम, 'कीर्त्ति विजय' अभिराम । 'कपूर चन्द' ते लहि (य) इ, 'कुंअरविजय' मुनि कहि (य) इ ||७|| सघला मां सिरदार, 'कनक विजय' अणगार । ए मोटउ महाभाग, श्रीआचारज लाग ॥ ८ ॥ पोतानु' पटधारी, 'विजयदेव' गणधारी | तेहनइ ते शिष्य दीनो, जडिउ कनक नगीनो ॥ ६ ॥ 'कनक विजय' मुनि चेलो, कल्पलता तणु वेलो 'विजयदेवसूरि' पासि, सगला शास्त्र अभ्यासि ॥ १० ॥ | गुरु नुं पास न मुकइ, विनय बड़ा नो न चूकइ । नाममाला नइ व्याकरण, कीधा कंठ आभरण ।। ११ ।। जोतिष तर्क विचार, जाणइ अंग इग्यार । 'पण्डित' पदवी विशिष्टा, 'सोल सत्तरि' प्रतिष्ठा ।। १२ ।। 'विसा' 'वदो' वित्त वावइ, 'अम्हदावाद' सोहावइ । खरची अति घणी आथि, 'विजयसेन सूरि' हाथि || १३ || 'जेसिंग' नुं निरवांण, 'खंभाइति' जग भाण । पाटि पटोधर पूरो, 'विजयदेव सूरि' सूरज ॥ १४ ॥ 'जेसिंगजी' पाट दीपइ, तेजि सूरज जीपइ । पूरइ संघ जगीस, 'श्रीविजयदेव सूरीस' ॥ १९ ॥ भलउ भटारक भावइ, 'पाटणि' चउमासु आवइ । सोल तिहुतरा वर्षि', 'लाली' श्राविका हर्षी ॥ १६ ॥ प्रौढ़ प्रतिष्टा ते मंडई, दानि दालिद खंडइ | पोस बहुल छट्ठि सार, नहीं जिहां दोष अढार ||१७|| Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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