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________________ ३५२ ऐतिहासिक जेन काव्य संग्रह देव तणो धन भक्ति युक्ति, गुरु गुरुणो तेड्या । साहमी साहमिणी संविभाग, करि पातक फेड्या ॥६॥ सणगार्या सब हाट पाट, चहुटा चउरासी । ___ रूडो गूडी बहुत तेज, नेजा उल्लासी ॥ 'मेडतीआ' म हरांण तेणि, दीधा नीसाण । वाजइ मङ्गल तूर पूर, पडइ कुमती प्राण ॥१४॥ धवल गीत गाई अपार, गोरो गुण उ(ओ?)री। 'कर्मचन्द्र' मुखचन्द्र देखि, नाचंति चकोरी ।। भड (१) भोजिग बहु भट्ट नट्ट, बोलइ बिरुदाली। ____ लंख मंख खेलन्ति खग्र, कर देता ताली ॥६५॥ 'कर्मचन्द' कुंअर उदार, शृङ्गार करावइ । तिम बिहु बांधव मात तात, 'सुरताण' सुहावइ ।। माथइ मउड विसाल भाल, कुण्डल दुइ दोपइ । हियडइ मोती तण (उ) हार, गंगाजल जीपइ ॥६६|| बाजू बंधन बहरखा, कर कंकण जडोआ। दीख्या लेवा काज सज, सिंधुर शिरि चढ़िआ । बोलइ इम गुण लोक थोक, परदेसी पाथू । . छत्रीसे वरसे छयदा, धन २ ए नाथू ।।६।। धन २ कुअर 'कर्मचन्द', धन २ ए भाइ । धन २ शाह 'सुरताण' धन, 'नायक' दे माइ ।। भुगल भेरि नफेरी नाद, बाजइ सरणाइ । एक भणइ ए 'वस्तुपाल', ए भोज' सवाइ ॥१८॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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