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ऐतिहासिक जेन काव्य संग्रह
देव तणो धन भक्ति युक्ति, गुरु गुरुणो तेड्या ।
साहमी साहमिणी संविभाग, करि पातक फेड्या ॥६॥ सणगार्या सब हाट पाट, चहुटा चउरासी ।
___ रूडो गूडी बहुत तेज, नेजा उल्लासी ॥ 'मेडतीआ' म हरांण तेणि, दीधा नीसाण ।
वाजइ मङ्गल तूर पूर, पडइ कुमती प्राण ॥१४॥ धवल गीत गाई अपार, गोरो गुण उ(ओ?)री।
'कर्मचन्द्र' मुखचन्द्र देखि, नाचंति चकोरी ।। भड (१) भोजिग बहु भट्ट नट्ट, बोलइ बिरुदाली।
____ लंख मंख खेलन्ति खग्र, कर देता ताली ॥६५॥ 'कर्मचन्द' कुंअर उदार, शृङ्गार करावइ ।
तिम बिहु बांधव मात तात, 'सुरताण' सुहावइ ।। माथइ मउड विसाल भाल, कुण्डल दुइ दोपइ ।
हियडइ मोती तण (उ) हार, गंगाजल जीपइ ॥६६|| बाजू बंधन बहरखा, कर कंकण जडोआ।
दीख्या लेवा काज सज, सिंधुर शिरि चढ़िआ । बोलइ इम गुण लोक थोक, परदेसी पाथू ।
. छत्रीसे वरसे छयदा, धन २ ए नाथू ।।६।। धन २ कुअर 'कर्मचन्द', धन २ ए भाइ ।
धन २ शाह 'सुरताण' धन, 'नायक' दे माइ ।। भुगल भेरि नफेरी नाद, बाजइ सरणाइ ।
एक भणइ ए 'वस्तुपाल', ए भोज' सवाइ ॥१८॥
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