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विजयसिंहसूरि विजयप्रकाश रास
सीख देइ 'मेडता' थकी, 'सादडी' पधारइ |
पर्व पण पारण, 'राणपुर' जोहारइ || जंगम थावर तीर्थ दोइ, मिलिआ 'वरकांणइ' ।
'जालोरउ' संघ वंदवा, आव्यो जग जाणइ ||८८|| 'कमल विजय' गुरु तिहां चउमासि, पूज्यना पग वंदइ । 'बीझो' वानु संघ रंगि, नाचइ नव छंद ॥ 'तिहां थी गुरु 'जेसंघजी', 'सीरोही' आवइ ।
अनुक्रम साम्हो संघ आवि, 'पाटण' पधरावइ ॥८६॥ पुण्यवन्त 'पाटण' प्रसिद्ध, नगरी सिरताज ।
तिहां 'हीरजी' निर्वाण जाणी, रहइ 'तप' गछ राज || हवइ सुणउ जे 'मेडतइ', हुआ मंडाण ।
चारित्र लेतां 'कर्मचन्द्र', उदयउ जग भांग ||६|| जीमणवार जलेबीई, बहु गाम जीमाडइ ।
'नायक दे' पति पांति खंति, करि मोटी मांडइ ॥ सोना रूपा ना कचोल, थाली सुविशाली ।
सालि डालि शुचि सालणां, घल घल घी नाली ॥ ६१ ॥ दही करम्बड घोल झोल, उपरि तम्बोल ।
नागरवेलि सोपारी पारी, यलि कुंकुम रोल ॥
चन्दन केसर छांटणा, माणस लख मिलीया ।
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वागा लाल गुलाल जाणि, केसूडा फलिआ ||२|| मिल्या महाजन मांडवइ, वइठा बहु टोला |
चालीसां दिवसां लगइ लीधा बन्नउला ॥
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