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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
दोहा ।
'साह 'मांडण' कुल जलधि नुं, हस्तिमल 'नथमल्ल' |
विषम विषय रसि नवि छल्यो, चोखइ चित्त छयल ||८१|| निज कुटम्ब तेडी करी, 'नाथू' कहइ निरधार ।
तुम्हे सहु (हुव) उ इकमना, लेस्युं संयम भार ॥ ८२॥ "कर्मचन्द' कुअर प्रमुख, सहु कहइ ए बात ।
अम्ह प्रमाण छइ तातजी, न करू धर्म विघात || ८३ || जिम आलोयण अवशरि, मिल्या सुगुरु निकलङ्क |
तिम हवि गछ नायक मिलइ, तो व्रत ल्युं निशङ्क || ८४|| ढाल राग तोडी:
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इसा अवसर 'लाहुर' सहरि करि दुइ वउमासि ।
'विजयसेन सूरि' 'मेडतइ', आव्या जित कासी ॥ " नाथू' पांचइ पुत्र लेइ, गुरु नइ बढ़ावइ ।
'कर्मचन्द' मुख चन्द, देखि गुरुजी बोलावइ || ८५ || गछपति जंपति ए उदार, बालक शुभ लक्षण ।
जे चारित्र लेस्यइ सही, तो थास्यइ विचक्षण ॥ 'नाथू' शाह चो भात्र, संभलि मुनि नाथ ।
हरख्या चित मांहि ज्यं, चढइ चिंतामणि हाथ ||८६|| गुरु कहइ 'नाथ' साह ! सुणो, चौमासा मांहि ।
'हीरजी' दर्शन तइ हेतु, पहुंचं उद्याहिं ॥ 'कर्मचन्द्र' कुंअर कुटम्त्र सहु, साथ समेला ।
'समय लेइ तु आवयो, थायो अह भेला ॥८७॥
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