SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 536
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजयसिंहसूरि विजयप्रकाश रास ३४७ मेखिं शनि नीचउ काउ, दशमइ भवनि उदार । पणि फल उचान दिई, केंद्र ठामि सुखकार ॥६४।। ए शुभ वेला अवतर्यो, 'कर्मचंद' सुखकंद। सुखि समाधि वाधतुं, बीज थकी जिम चंद ।।६।। ढाल :-राग गौडो । इक दिन इम चिंतइ, नायक दे भरतार, ___ सुख सेजिं सूतो, जाग्यो रयणि मझार । मई पूर्व भव काइ, कीधां पुण्य अपार, तेणिं सही पाम्यां, सुख सघला संसार ।। ६६ ।। मुझ मंदिर मइडी, मणि माणक ना हार, नित नवां पहरवा, नित नवला आहार । नितु २ घर आवइ, अरथ गरथ भंडार, वलि पाम्या परिघल, पुत्र कलत्र परिवार ॥ ६७ ॥ इणि भविनवि कोधउ, सूधो श्री जिन धर्म, विष (य) रसि हुंसी, कीधा कोड कुकर्म । 'धन्नो' 'कयवन्नो', 'सालिभद्र' सुकमाल, ___ जोउ धर्मिइ तरिया, वलि 'अवंति सुकमाल' ।। ६८ ।। ए विषय तणि रसि, प्राणी नई बहु रंग, जिम नयण तणइ रसि, दीवइ पडइ पतंग । रागि करि वेध्यो, बींध्यो वाण कुरंग, अम्बाडी पाडइ, करिणी मद मातंग ॥ ६६ ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy