SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 535
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पुण्यइ पामों ऋद्धि अपार, जग जण जंपइ जै जैकार। - 'सालिभद्र' सम सुख भोगवइ, सुखि समाधि दिन जोगवइ ।।५३ 'नायक दे' नंदन दुइ जण्या, सकल कला गुण सहजि भण्या। 'जेसौ' नइ 'केसौ' तिस नाम, 'दशरथ घरि जिम 'लखमण' 'राम'५४। त्रीजो सुत जायौ तिण वलि, मात तात पुहती मनरलो। - 'मेडता' मांहि हुआ आणंद, 'कर्मचंद' नामइ कुल चंद ।। ५५ ॥ 'कपूरचंद' चोथा नुं नाम, 'पंचायण' ते पंचम ठाम । 'नाथू ना नंदण गुण भर्या, जाणिकि पांच पांडव अवता ।।५६।। दोहापांडव पांचई मांहि जिम, विचलो सुत सिरदार । तिम 'नाथू' नंदन विचिं, 'कर्मचंद' सुविचार ||५|| विक्रम संवत सोलसई' उपरि 'च्यु आलीस'। शाके 'पनर नवोत्तरई' पूरइ सजन जगीस ॥ ५८ ।। उजल पखि फागुण तणइ, बोज दिवसि रविवार । . उत्तर भद्र पदा तणइ, चोथा चरण मझार ।। ५६ ।। राजयोग रलीयामणइ, फाग रमइ नर नारि । 'कर्मचंद' कुंवर जण्यो, जगि हुआ जय जयकार ।।६०|| कर्क लगन मूरति भवनि, तिहां गुरु उंचइ ठामि । . बइठो तिणि तूठो दिई, गुरु पदवी अभिराम !!६१।। त्रीजइ राहु सु खेत्रीउ, कन्या राशि निवास । भाई भुज बलि दीपतौ, दुसमन थाइ दास ॥६२।। रवि कवि बुध ए आठमइ, कुंभि लगन बईट्ठ।। नवमई भवनिं केतु कुज, पूरण चंद्र पइट्ट ॥६३।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy