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विजयसिंहसूरि विजयप्रकाश रास
गाजइ गयवर हय (व)र घट्ट, व्यवहारी नणा गज घट्ट ।
___ वनवाडी ओपइ आराम, पासइ 'फलवधि' तीरथ ठाम ॥४२।। देश देश ना आवइ लोक, दादइ दीठइ नासइ सोक ।
परता पूरइ ‘पास कुमार', राति दिवस उघाडा बार ॥४३।। इस्युं तीरथ नहीं भूमोतलई, माणस लाख एक जिहां मिलइ । पोस दसमी जिन जन्म कल्याण, 'मेडता' पासि इस्युं अहिनाण ॥४४॥ 'मेडतुं' दीठइ मन उलसइ, देवलोक ते दूरि वसइ ।
'मेडतुं' देखी लंका खिसी, पाणी आणइ 'वाणारसी' ॥४५।। शिखर बद्ध ऊंचा प्रासाद, नन्दीश्वर स्युं मांडइ वाद ।
सतरभेद पूजा मंडाण, रसिया श्रावक सुणइ बखाण ।।४।। महाजन नि मनि मोटी दया, रांक ढोक उपरि बहु मया ।
ठामि २ तिहां सत्रुकार, तिणि नगरी नित दय दयकार ॥४१॥ तेणिं नगरि महाजन मां बडो, 'चोरवेडिया' कुल नु दीवडो। 'ओसवाल' अति अरडकमल्ल, साह 'मांडण' नन्दन 'नथमल्ल' ॥४८॥ तस घरि लक्ष्मी वासो वसइ, रूपि रति पति नइ ते हसइ ।
नाथू नइ घर गज गामिणी, 'नायक दे' नामि कामिनी ।।४।। मणि माणक मोटा मालिआ, सोना रूपां नी थालियां।
सालि दालि सखरां सालणां, उपरि घल घल घी अति घणां ॥५०॥ "फुलां' दादी दिइ बहु दान, साहमी साहमणि नई सन्मान । ____ साधु साधवी घरि आवंती, पाणी नो परि घी विहति ॥५१॥ मीठाई मेवा भरपूर, चोआ चंदन अगर कपूर ।
'नायक दे' नवयौवन नारिं, 'नाथू' सुख विलसइ संसारि ॥५२।।
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