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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
ढाल :-चौपाइ। 'मरू' मण्डल मांहि 'मेडतु', दालिद्र दुख दूरि फेडतउ ।
तेहनी कीरति जग मां घगी, एहवी लोक बात मई सुणी ॥३२॥ जिन शासन मांहि बोल्या बार, चक्रवर्ती 'भरतादिक उदार ।
तिम शिव सासनि चक्रो होइ, च्यार उपरि अधिका वलिदोइ ।।३३।। तेमा धुरि 'मांनधाता' भण्यो, चक्रवर्ती ते मूलिं जण्यो।
तव माता पहुती परलोक, राजलोक सघलइ तव शोक ॥३४॥ किम ए बाल वृद्धि पावस्यइ, इंद्र कहइ मुझ निधा(श्रा?) वसइ । __ तिण कारणि 'मांनधाता' कघउ, चक्रवर्ती पहलिउ गहगह्यो ।।३५।। दान देवा घरि साम्हो जाय, ते मोटो हुउ महाराय ।
कोडा कोडि बरस तसु आय, प्रजा त{ पीहर कहवाय ॥३६|| कृत युग मां ते (हुयउ) प्रसिद्ध, इन्द्रइ राज्य थापना किद्ध ।
तिणिं नगर वास्युं 'मेडतुं', लीलाई लखमी तेडतुं ॥३७॥ 'मेडतुं'ते 'मानधाता पुरी', जेहथी लाजी 'अलकापुरि'।
जे मांटइ तिहां धनपति एक, इणि नगरि धनवन्त अनेक ॥३८॥ लोक वात एहवो सांभलि, साच्यु ते जाणइ केवली। 'मेडता' नी महिमा अति घणी, तिग वेला 'मेडतोंआ' घणी ॥३हीं। चउपट चहुटां केरि ओली, गढ़ मढ़ मन्दिर मोटी प्रोलि।
घरि घरि उछरंग कल्लोल, बाजइ मादल भुगल ढोल ॥४०॥ चिहु दिसि सजल सरोवर घणां, देराणी जेठाणी तणां ।
कुंडल सरवर सोहामj, जाणे कुण्डल धरणी तपे ॥४॥
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