SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 537
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४८ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह nmomrani खारा नइ खोटा, मीठां मधुरा भक्ष, काचा नइ कोरां, कंदा मूल अभक्ष । रयणि भोयण घण, परदारा गम(न) किद्ध, तोहि तृपति नहीं मुझ, जिम खारइ जलि पिद्ध ॥७०॥ ए जरा धूतारी, धोइ देस विदेस, विण साबू पाणी, उज्जल करस्यइ केस । तिणि विण आव्यइ जे, मई कीधा बहु पाप । ते मुझ मनि जाणइ, जिम मा जागइ बाप ॥ ७१ ॥ कोइ सुगुरु मिलइ सुं, निज पातिक आलोउं, गुरु वाणी गंगा, पाप तणां मल धोऊ। एहवई 'मेडता' मां, आव्या बड अणगार । श्री 'कमल विजय' गुरु, सकल शास्त्र भंडार ।। ७२ ।। साह 'नाथू' हरख्या, निरखी तस दोदार, धन २ ए मुनिवर तपा गछ शृङ्गार । जाव जीव एहनि द्रव्य सात आहार । मीठाइ मेवा, विगइ पंच परिहार ॥ ७३ ॥ ए गुरु संवेगी, वैरागी धन धन्न । ए मोटो पंडित, ठाणे पंचावन्न । आवी वंदी नइ, कही 'नायक दे' कंत । गुरुजी आलोयण आपो, मुझ एकंत ।। ७४ ॥ चलता पंडित कहइ सुणिं तु 'नाथूमाह', _ आलोयण लेयो, जब वंदउ गछनाह । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy