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________________ ३३६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह २ ढाल : - बिछुआनो महिर करो मुझ ऊपरै, गुरुआ श्री गणधार रे लाल । 'भणशाली' कुल सेहरो, मात 'मिरगा' सुखकार रे लाल || १||म०॥ सुन्दर सूरति ताहरी, दीठां आवै दाय रे लाल । मधुकर मोह्यो मालती, अवरन को सुहाय रे लाल || २ || म० ॥ सूर गुणे करि सोहता, षट् जीव ना प्रतिपाल रे लाल । रूपे वयर तणी परे, कलि गौतम अवतार रे लाल || ३ || म० ॥ साधु संघाते परिवर्या, जिहां विचरै श्री गुरू राय रे लाल । सुख सम्पति आणन्द हवइ, वरते जय जय कार रे लाल ||४||म० || श्री ' जिनसागर सूरि' जी, सई हथ थाप्या पाट रे लाल । श्री 'जिन धर्म सूरीश्वरु', दिन दिन हवइ गहगाट रे लाल ||५||०|| 'राजनगर' रलियामणो, पद महोछव कीयो सार रे लाल । 'विमला दे' ने 'देवकी', गुण गण मणि आधार रे लाल || ६ || म० ॥ गच्छ चौरासी निरखिया, कुण करें ए गुरु होड रे लाल । 'ज्ञानहर्ष' शिष्य वीनवै, 'माधव' वे कर जोड़ रे लाल || ७ || म० ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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