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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
२ ढाल : - बिछुआनो
महिर करो मुझ ऊपरै, गुरुआ श्री गणधार रे लाल ।
'भणशाली' कुल सेहरो, मात 'मिरगा' सुखकार रे लाल || १||म०॥
सुन्दर सूरति ताहरी, दीठां आवै दाय रे लाल ।
मधुकर मोह्यो मालती, अवरन को सुहाय रे लाल || २ || म० ॥ सूर गुणे करि सोहता, षट् जीव ना प्रतिपाल रे लाल ।
रूपे वयर तणी परे, कलि गौतम अवतार रे लाल || ३ || म० ॥ साधु संघाते परिवर्या, जिहां विचरै श्री गुरू राय रे लाल ।
सुख सम्पति आणन्द हवइ, वरते जय जय कार रे लाल ||४||म० || श्री ' जिनसागर सूरि' जी, सई हथ थाप्या पाट रे लाल ।
श्री 'जिन धर्म सूरीश्वरु', दिन दिन हवइ गहगाट रे लाल ||५||०|| 'राजनगर' रलियामणो, पद महोछव कीयो सार रे लाल ।
'विमला दे' ने 'देवकी', गुण गण मणि आधार रे लाल || ६ || म० ॥ गच्छ चौरासी निरखिया, कुण करें ए गुरु होड रे लाल । 'ज्ञानहर्ष' शिष्य वीनवै, 'माधव' वे कर जोड़ रे लाल || ७ || म० ॥
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