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श्रीजिन सागर सूरि गीतम्
॥श्री जिनधर्म सूरि गीतम् ॥
१ ढाल :-सोहिलानी आया श्री गुरु राय, श्री खरतर गच्छ राजिया ।
श्री 'जिन धर्म सुरिन्द', मङ्गल वाजा बाजिया ॥१॥ पेसारे मंडाण, 'गिरधर' शाह उच्छव करइ ।
____ 'बीकानेर' मझार, इण विध पूज जी पग धरइ ।।२।। श्री 'संघ' साम्हो जाइ, आणी मन उल्लट घणे।
लुलि लुलि वांदइ पाय, सो दिन ते लेखै गिणे ।।३।। सिर धर पूरण कुंभ, सूहव आवै मलपती।
भर भर मोती थाल, बधावे गुरु गच्छपती ॥४॥ पग पग हुवे गहगाट, घर घर रंग बधामणा ।
झालर रा झणकार, संख शब्द सोहामणा ॥ ५॥ कीधी प्रोल उत्तङ्ग, नर नारी मन मोहनी ।
नाना विघि नाग, तिण कर दोसइ सोहती ॥६॥ सिणगार्या सब हाट ऊंची गुडी फरहरइ।
_दूधे बूढा मेह, याचक जण यश उच्चरइ ॥७॥ प्रथम जिणेसर भेटि, आया पूज उपासरे।
. सांभलि गुरु उपदेश, सहुको पहुंता निज घरे ।।८।। सोहलानी ए ढाल, मिल मिल गावे गोरड़ी।
'ज्ञान हर्ष' कहै एम०, सफल फलो आश मोरड़ी ॥६॥
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