SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह * ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह * द्वितीय विभाग (खरतरगच्छको शाखाओं सम्बन्धी ऐतिहासिक काव्य ) वेगड खरतरगच्छ गुर्वावली पणमिय वीर जिणंद चंद, कय सुकय पवेसो। ___ खरतर सुरतरु गच्छ स्वच्छ, गणहर पभणेसो। तसु पय पंकय भमर सम, रसजि गोयम गणहर । तिणि अनुक्रमि सिरि नेमिचंद मुणि, मुणिगुण मुणिहर ॥१॥ सिरि 'उद्योतन' 'वर्द्धमान', सिरि सूरि 'जिणेसर'। थंभणपुर सिरि 'अभयदेव', पयडिय परमेसर । 'जिणवल्लह' 'जिनदत्त' सूरि, 'जिणचंद' मुणीसर । 'जिणपति' सूरि पसाय वास, पहु सूरि 'जिणेसर' ॥ २॥ भवभय भंजण 'जिणप्रबोध', सूरिहिं सुपसंसिय । आगम छंद प्रमाण जाण, तप तेउ दिवायर । सिरि 'जिन कुशल' मुणिंद चंद, धोरिम गुण सायर ॥ई।। भाव(ठ)-भंजण कप्प रुक्ख, 'जिन पद्म' मुणीसर । सब सिद्धि बुद्धि समिद्धि वृद्धि, "जिणलद्धि' जइसर । पाप ताप संताप ताप, मलयानिल आगर । सूरि शिरोमणि राजहंस, 'जिणचंद' गुणागर ।। ४ ।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy