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वेगड खरतरगच्छ गुर्वावली
३१३ बोहिय श्रावक लाख साख, सिव मुख सुख दायक ।
महियलि महिमामाण जाण तोलइ नहु नायक । 'झंझण' पुत्त पवित्र चित्त, कित्तिहिं कलि गंजण।
सूरि 'जिणेसर' सूरि राउ, रायह मण रंजण ॥ ५ ॥ 'भीम' नरेसर राज काज, भाजन अइ सुंदर ।
वेगड नंदन चंद कुंद, जसु महिमा मंदर। सिरि 'जिनशेखर सुरि' भूरि, पइ नमइ नरेसर ।
काम कोह अरि भंग संग जंगम अलवेसर ॥ ६ ॥ संपइ नवनिध विहित हेतु, विहरइ मुहि मंडलि। ..
थापइ जिणवर धम्न कम्म, जुत्तउ मुणि मंडलि। जां गयणंगणि 'चंद सूरि', प्रतपई चिर काल ।
तां लग सिरि 'जिणधम्म सूरि', नंदउ सुविशाल ॥ ७ ॥
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