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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
विद्याविशारद किहां थया, किम सरस्वती प्रसन्न,
कहां साधना कीधी भली, सुणतां चित्त प्रसन्न ॥ ६ ॥ देवचन्द्रना वचनथी, किम खरचाणो द्रव्य,
किम भूपति पाये नम्या, ते विरतंत कहु भव्य ॥ ७ ॥ सर्व गुण गणनी वारता, भाषे कवियण जेह,
सांभलजो भविजन तुमे, पावन थाये देह ॥ ८ ॥ देशी हमीरानी ।
थाली आकारे थिर भलो, जंबुद्वीप विदीत | विवेकी । तेह भरतक्षेत्र रम्यता, आरज देश सुप्रतीत || वि० ॥ १ ॥ भवियण भाव धरी सुणो ॥ वि० ॥ मरुस्थल देश लिहां सुन्दरु, तेह में 'विकानेर' दंग || वि० ॥ तेहने निकट एक रम्यता, ग्राम अछे सुभ चंग ॥ वि० ॥ २ ॥ था० ॥ रिद्धिवंत महाजन घणा, रिद्धेकरी समृद्ध; 11 fão 11 अमारीशब्दनी घोषणा, सुखीआ जन सुबुद्धि || वि० ॥ ३ ॥ था० ॥ 'ओशवंशे' ज्ञाति जाणीये, 'लुंणीयो' गोत्र सुजात ॥ वि० ॥ साह श्री 'तुलसीदासनी', धर्मबुद्धि विख्यात ।। वि० ॥ ४ ॥ था० ॥ 'तुलसीदास' नी भार्या, 'धनबाई' पुन्यवंत | विवेकी ।
शील आचारे सोभती, सत्यवक्ता क्षमावंत || वि० ॥ ५ ॥ था० ॥ यथाशक्ति क्रय विक्रयता, व्यवहारनु जे धाम ॥ वि० ॥ दम्पती प्रीतिपरम्परा, धर्मे खरचे दाम || वि० ॥ ६ ॥ था० ॥ सुविहितगच्छमें जामली, वाचकमें शिरदार ||वि० ॥ 'वाचक 'राजसागर' सुधी, जैन काजी मनोहार || वि० || ७ ||था ||
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